Book Title: Anusandhan 2003 04 SrNo 23
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 24
________________ April-2003 चार जिनस्तुतिओ (१) श्रीआदिनाथस्तुति - कुटुम्बनामगर्भिता ॥ श्रीगुरुभ्यो नमो नमः ॥ जयकर जन्तुकृपालय ! पालय नतमुनिचन्द्र । ऋषभजिनार्कसनाभि- भिकुलाम्बरतन्द्र(चन्द्र) ॥१॥ काका-काकीर्णोद्धर मामामामिलितः । सासूनृतमरूपम ! ससुरोमामिलितः ॥२॥ जयजयरवनन्दीकरो दिक्करिविमलयशः । भाभो-भाभी रतिकर ! दादो-दादिविशम् ॥३॥ देवर-दावलि दीधिति-निर्जितदाडिमबीज ! । भाइनवाणी वितरतु रोगाद्यशुभत्रीज ॥४॥ भतरीजीवसुखावह ! भाणेजीवनदः । रक्ष शुभाणेजो जय कारकजीवनदः ॥५।। शालीकृतशिव ! शालो-देरानीतिकरः । ज्येष्टभवोदधितारक ! जेठानीतिहरः ॥६॥ मासुखमाशीर्वादो बहुशिवसुखभरतार । सुकृतलतापल्लवना बहनीरदवरतार ॥७॥ (त्रिभिर्विशेषकम् ) भोजाईतिप्रशामक ! रेफइतात्तिविलाप ! । ज्ञानजमाइभगतिधर देहि सुकृतमाबाप ॥८॥ सुजनानन्दरजोज्झित ! नानन्दरिपुकन्द ! । दर्शतस्तव जिनवर ! मादृश एष ननन्द ॥९।। श्रीमद्वाचकलब्धिसागरगुरोः शिष्याणुना भक्तिना नीत: संस्तुतिगोचरं जिनपतिः श्रीमत्कुटुम्बाह्वया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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