Book Title: Anusandhan 2003 04 SrNo 23
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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अनुसंधान-२३ मिच्छत्त-पमाय-कसाय-जोगु अविरइपण-आसवगहिय लोगु । . सबिलं जह सचइय जाणवत्तु असुहासवओ तह कम्मपत्तु ॥१०१॥ पण विसयवग्घगत्थं रागद्दोसग्गिणा उ संतत्तं । चित्तं कसायखग्गं कम्मं असुहासवं जणइ ॥१०२॥ समसंवेयनिव्वेय - तत्तचिंतावलंबियं । सव्वजीवसुहारूढं मणं देइ सुहासवं ॥१०३।। भूओवघायजणयं वयणं सच्चं पि सत्तदुहजणयं । उम्मग्गपावसुयगं पावासवहेउयं भणियं ॥१०४॥ सयारंभाइजोगेहिं पाववावारओ वि य । अंगाणि पावकम्माणि जोययंति य देहिणं ॥१०५॥ धम्माणुट्ठाणजुत्तेणं गुत्तकाएण संजओ । संचिणेइ सुहं कम्मं खवेइ असुहं तहा ॥१०६॥(दारं २३(२५)॥ आसवाण निरोहो जो संवरो सो पकित्तिओ । दव्वभावविभेएणं संवरो दुविहो भवे ॥१०७|| कम्माण पुग्गलाण य छेयणं सुतवस्सिणं । सो सत्तवन्नभेएणं जिणेहिं परिकित्तिओ ॥१०८।। जहा भणियं च
"समिई गुत्ति परीसह जइधम्मो भावणा चरित्ताणि । पण ति दुवीस दस बार पंचभेएण सगवन्ना ॥" (दारं २४(२६)। जीए जीवाण कम्माणं बीयं डज्झइ सव्वहा । निज्जरा सा सकामा य अकामा य भवे दुहा ॥११०॥ सकामा सा हु संघस्स अकामा सेसपाणिणं । बज्झब्भंतरभेएणं तवसा बारसा य सा ॥१११॥(दारं २५(२७)) ॥
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