Book Title: Anusandhan 2003 04 SrNo 23
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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April-2003
नो रज्जं नो राया नो माता नो पिया य तुज्झ धणं । नो मित्ता नो पुत्ता न कलत्तं नेव भवणं च ॥८९॥ नकुलं न बलं न दलं न य लोगो परियणो य पुढवितलं । जह महुराया एगो सव्वं मुत्तुं गओ नरयं ॥ ९०|| ( दारं १९ (२१))৷ चउगइचवलावत्ते दुहवडवानलपवंचसंतत्ते ।
निच्चवराया जीवा भमंति भवसायरे भीमे ॥ ९१ ॥
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खिणु दिज्जइ भवतंडवविओगु, जहिं दीसइ बहु नच्चणपओगु । इगगेहे विलवइ रुयइ लोग, किह दीसइ वरवीवाहजोगु ॥ ९२ ॥ अणचिंतिय कत्थवि पडइ सोगु इग हसिय हसिय भुंजइ सुभोगु । कस्सइ तणु गिues विविहरोगु, इग विलवइ मम हा पिउविओगु ||१३||
अणुहवइ दुहं तिरिनिरयलोगु, मणुओ एग पहु इग आभिओ । देवाण वि हरिणो तह निओगु, इग छुल्लइ नत्थि हु अवरलोगु ॥ ९४ ॥ ( दारं २० (२२)) |
सचेयणाचेयणया पसंत्था समागया जे तणुभोगभावं । सव्वेवि ते अप्पसरूवओ वा, विलक्खणा तेहिं तुमं पि अन्नो ॥ ९५ ॥ अन्नं सभज्जरज्जं राया माया पिया व अन्नो य । कुलबल भूतलमन्त्रं धम्मं मुत्तूण सममन्नं ॥ ९७॥
जीवो पयत्थनाणी सुद्धो निच्चो जडाइधणवत्थू ।
सव्वं हिच्चा वच्चइ इय अन्नतं धणो मुणइ ||१८|| ( दारं २१ (२२))। निसग्गेण [ गायं ? ]सया पूइगंधं सिराचम्महडुंतजालेण बद्धं । अगासुइच्चायदुव्वायपुण्णं सरीरं किमीकीडकोडिप्पणिं ॥ ९९ ॥ जेहिं पमुत्तूण य इंदियत्थे दिन्नं सरीरं सिवसाहत्थे । इमस्त देहस्स बुहेहिं तेहिं कयंबविप्पुव्व फलं गहीयं ॥१००॥
( दारं २२ (२४)) ||
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