Book Title: Anusandhan 2003 04 SrNo 23
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 14
________________ April-2003 पण थावर सुहुमियरा विगलिंदिय नारया य जलथलया । उरपरि भुयपरिसप्पा खयरा य समुच्छिमा एए ॥६७॥ गब्भय जल थल खयरा मणुआ संमुच्छिमा य गब्भभवा । देवा इय पणवीसं चिंतसु दारेसु देहाइ ॥६८॥ सरीरोगाहणसंघयण-संठाण कसाय तहय सन्नाओ । लेसिदिय समुघाया सन्नी वेए य पज्जत्ती ॥६९॥ दिट्ठी दंसणनाणे जोगुवओगे तहा किमाहारे । उववाय ठिई समुघाय-चयणं गइ आगई चेव ॥७०॥ आया सुही य इय मग्गणठाणनाणो, आया सुही य जिणदव्वमभुंजमाणो । आया सुही भवइ फासियवीसठाणो, अक्खाणयं जह य सागरगाभिहाणो ॥७१॥ (द्वारं १५(१६))॥ आया दुही भवइ कोहणमाणमाओ, आया दुही य बहुलोहसमुद्दपाओ । सच्छंदया गुरुकुलाइमसेवमाणो दिटुंतओ जह कसायकुडंबठाणो ॥७२।। परिग्गहो किं न य धम्ममग्गहो, निग्गंथधम्मस्स परिग्गह दुप्पहो । परिग्गहो अत्थि जणाण निग्गहो, अणाइओ विग्गहलग्गकुग्गहो ॥७३॥ पाणाण भूयाइ य पाणसंगहो, परिग्गहो कोणिय-चेड-विग्गहो । अहो ! दुहोहो य सया परिग्गहो, असंगहो तेण समग्गविग्गहो ॥७४|| मुत्तारंभपरिग्गहसंगो जीवो विसुद्धवेरग्गं । अंगोवंगसुरंगो लहइ मुणी सव्वसुहजुग्गं ॥५॥ निस्संगयासुरनईसुतरंगरंगो, जोगी विहंगपवरुव्व सुही सुलिंगो । इंदत्थुओ व्व नमिरायरिसिव्वंऽसंगो, आमंतिओ वि हरिणा विविहं अभंगो ॥७६।। (द्वारं १८) सुभाविया बारस भावणत्था, जेहिं सया ते उ नरा कयत्था । जोगा सगा तेहिं कया पसत्था, नट्ठा गया तेसि अ अप्पसत्था ॥७७॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98