Book Title: Anusandhan 2003 04 SrNo 23
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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अनुसंधान-२३ वेरग्गं मुणिवग्गं कुणइ महग्धं च धम्मरुइजुग्गं । वेरग्गं जिणमग्गं वेरग्गं चेवमिह सग्गं ॥५७॥ वेरग्गे दोहग्गं सोहग्गं वा करेइ किमुविग्गं । अहवा वि अणारुग्गे सणंकुमारस्स किं भग्गं ? ||५८।। वेरग्गेणुस्सग्गं गयसुकुमालो चिलाइपुत्तो य । तह य सुकोसलसुमुणी कुणइ सुसाणे वि उस्सग्गं ॥५९|| सुरवइसुहसंसग्गं वेरग्गा सालिभद्दसोहग्गं । वेरग्गमदोहग्गं तम्हा भय जीव ! वेरग्गं ॥६॥ संवेयभावजणणीहिं कहाहिं भिन्नो, जो होइ वा मरणजम्मदुहेहिं खिन्नो । मोहो सुजातपमुहुव्व य तेण छिन्नो, किं सोग्गसेणकुमरव्व भवं न तिन्नो ?
॥६१।। (द्वारं १२(१३) ॥ निव्वेयसायरतरंगसएहिं पुनो माणावमाणरिउमित्तसमाणसन्नो । जो वा भवे सुदमयंतमुणिव्व धन्नो, अप्पा हु किं सिवपए न य तेण दिन्नो
॥६२॥ (द्वारं १३(१४) ॥ अहो ! णायपुत्तेणिमं बंभचेरं सया वण्णियं वा वयाणं च थेरं । जओ नोवसग्गा न रोगा न वेरं, बहूणं सुरेहि कयं पाडिहेरं ॥६३।। बंभव्वयकयसोहो पावइ कित्तिं जसं च जियलोए । देवाण वि नमणिज्जो सुहगइभागी च परलोए ॥६४|| गिहत्था वि सुसीला जे हुंति ते सव्वसिद्धिगा । . सणंकुमारभूवुव्व पालगोवालया जहा ॥६५।। धन्नो सुसीलगुणदंसणदीहदंसी, सिट्ठी सुदंसण सुदंसरयावयंसी । बंभव्वयामयसरोवररायहंसी, जा नम्मया व रमणी कमलावयंसी ॥६६॥
(द्वारं १४(१५)) ॥
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