Book Title: Anusandhan 1999 00 SrNo 15
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 8
________________ अनुसंधान-१५ • 3 १३० मां कविए नवोदित सूर्यनी साथे नूतन वर्षनी लोक-स्थितिने उत्प्रेक्षात्मक रीते सरखावीने सरस अर्थान्तरन्यास (लोकोक्ति) प्रस्तुत कर्यो छे : यातानुयाते कुशलो हि लोकः - अर्थात् लोको तो अनुकरण करवामां निष्णात ज होय ! तो १३१मां वळी, नूतन वर्षारंभे मोमां तांबूल (पानबीडां )नाखीने वर्तता लोकोने नोंधीने कडं के आ दिवसे जो मों लाल-लालीवाळु होय, तो एर्नु आखं वरस खुशहाल जाय ! कवितुं वास्तवदर्शन अद्भुत छे. पछीनां पद्योमां पण नूतनवर्षनी लोक-स्थिति ज निरूपाई छे. १३९मां कवि, पोते उन्निद्र अने हृदयमां बीजमंत्र ज अनुभवी रह्या होवानी पोतानी ते दिवसनी स्थिति निरूपे छे. १४०मां पण, निद्रा बीजजापने कारणे रूसणे गई होवा विधान काव्यमय रीते थयुं छे. १४५ थी १४९मां मंत्र- रहस्यमढ्युं वर्णन थयुं छे. १५१-५२मां सारस्वत जाप, तेना प्रभावे थयेल स्वप्न-साक्षात्कार, अने तेना प्रतापे ज पोते आ काव्य रची शक्या होवानी केफियत आपणने संभळाय छे. १५२मां पोताना गुरु 'नन्दिरत्न'नो नामनिर्देश कर्ताए को छे. काव्यमा प्रयुक्त केटलाक तळपदा लागता शब्दो पण नोंधपात्र छ : लम्बा (लांबी) (१४); सरयः (सर-सरवाणी ?)(१४); करढिकुला (१५) (हाथना ठोंसा?); टंकावली (चांदलां ?)(४१); मेराज्यक (मेरायां) (४५) इत्यादि. कविओ अने साधको-बन्नेने रस पडे तेवू आ काव्य यथामति शोधीने अत्रे पेश करतां आनंद थाय छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 ... 118