Book Title: Anusandhan 1999 00 SrNo 15 Author(s): Shilchandrasuri Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad View full book textPage 7
________________ अनुसंधान-१५ .2 दरज्जो बक्षे तेवू थयुं छे. कविने शृंगार-रसनो लगार पण छोछ नथी. पद्य ५७-५८मां कर्ता बहु महत्त्वनी वात नोंधे छे. दीवालीनी रात्रिना अंत्य प्रहर दरम्यान, पोताने सारस्वत मंत्रनो एक लाख संख्यानो जाप परिपूर्ण थयो ते क्षणे, पोते क्षणभर माटे तन्द्रामा खोवाई गया हता; अने ते ज क्षणे तेमने माता शारदानां साक्षात् दर्शन सांपड्यां. कवि-साधके आ साक्षात्कार केटली बधी सूक्ष्मेक्षिकाथी कर्यो हशे तेनो ख्याल तो ते पछीना ५९ थी १०६ पद्योमा तेमणे करेलां देवी-विग्रह-वर्णन उपरथी मळी शके छे. आ वर्णनमां पण स्तन-वर्णन करतां कविए शृंगाररस अने कल्पनाशक्तिनो भारी ठाठ बनाव्यो छे. परंतु प्रथम दृष्टिए स्थूल कक्षानुं लागतुं आ वर्णन, सूक्ष्म तंत्र-दृष्टि धरावता अभ्यासी माटे एवं ज रहस्यवादी अने तात्त्विक होवू जोईए, एवं सतत लाग्या करे छे. तज्ज्ञो आ वर्णनना मर्म उघाडी आपे तेवी लालच अवश्य व्यक्त करूं. आ दृष्टिए पद्य ७८, ८७, ८९ ध्यानाह जणायां छे. १०३-४-५-६मां क्रमशः देवीना हाथोमांनां पुस्तक, माला, कमंडलु अने वाहन एवा हंसनुं वर्णन छे. १०७मां तन्द्राधीन साधके करेल देवीना पूजननुं वर्णन छे. १०८ थी ११३मां देवी, साधक द्वारा साक्षात्कार-क्षणे थयेलुं स्तवन छे, जेमां देवीने कारकल्प-रूपे (१०८) वर्णवीने ऎकारने पण (११२) स्मरण करेल छे. ११४ थी ११७ वळी महत्त्वपूर्ण पद्यो छे. तेमां, साधकने देवीनो आदेश मळे छे के "ऊठ, तारुं मों खोल", अने साधके ते प्रमाणे करतां ज, पोताना वैडूर्यमय कमण्डलुमांथी तेना मोंमां अमृतनी धारा वहावी, अने तेनां बिंदु साधकनी जीभ पर लागतां ज पांच-छ वार बीजमंत्रनो उच्चार करावीने (के करीने ?) देवी अंतर्धान थई गयां-एq वर्णन छे. पोतानी गूढ अने गोपनीय विरल अनुभूति, आq विशद वर्णन करनार साधक कविने आपणे साधुवादना कया शब्द वडे नवाजीशुं ? पद्य ११८मां साधकनी स्थूल चेतनानुं जागरण अने मातानां दर्शन पछीना वियोगनी खिन्नतानुं वर्णन छे. ११९ थी प्रातः काल-सूर्योदय- वर्णन शरु थाय छे, जेमां दहीनां वलोणां (१२३)नुं तथा कुकडानी बांग (१२४)नुं पण वर्णन छे. १२६मां श्रीवीरनिर्वाणपर्वरात्रिनो उल्लेख, कर्ता जैन साधु होवानुं सूचवी जाय छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 ... 118