Book Title: Antkruddasha Sutra Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak SanghPage 14
________________ *********** [13] माता-पिता ने अतिमुक्तककुमार को अनेक प्रकार की युक्ति प्रयुक्तियों से समझाया, किन्तु राजकुमार की दृढ़ भावना के कारण वे उसे विचलित नहीं कर सके। अतएव उन्होंने अपने पुत्र को आज्ञा प्रदान कर दी। अतिमुक्तककुमार भगवान् से दीक्षा अंगीकार कर अतिमुक्तक अनगार बन गये । एक दिन कुमार मुनि अन्य मुनियों के साथ वर्षा बरसने के बाद शौच निवृत्ति हेतु नगर के बाहर पधारे । बालमुनि ने बहते हुए पानी को मिट्टी की पाल बना रोक लिया और उसमें अपनी पात्री डाल कर "मेरी नाव तिरे-मेरी नाव तिरे" इस प्रकार के शब्दों का उच्चारण करने लगे। ऐसा देखकर साथ वाले संतों को शंका उत्पन्न हुई। भगवान् के पास पहुँच कर अपनी शंका प्रभु के सामने रखी। प्रभु ने समाधान फरमाया "हे आर्यो ! यह कुमार मुनि चरम शरीरी जीव है। इसी भव में मोक्ष जाने वाला है, अतः इनकी हिलनानिन्दा मत करो। " भगवान् के वचनों को सब श्रमणों ने स्वीकार किया। अतिमुक्तकमुनि ने ग्यारह अंगों का अध्ययन किया। कई वर्षों तक संयम पर्याय का पालन कर, अन्त में संथारा कर मोक्ष पधारे। - Jain Education International सातवां वर्ग इस वर्ग के तेरह अध्ययन हैं १. नंदा २. नन्दवती ३. नन्दोत्तरा ४. नन्दश्रेणिका ५. मरुता ६. सुमरुता ७. महामरुता ८. मरुद्देवा ६. भद्रा १०. सुभद्रा ११. सुजाता १२. सुमनातिका, और १३. भूतदत्ता । ये तेरह ही श्रेणिक राजा की रानियाँ हैं। इन सभी ने श्रेणिक राजा की मौजूदगी में ही श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पास दीक्षा अंगीकार की । सभी ने ग्यारह अंगों का अध्ययन किया। बीस वर्ष संयम का पालन किया और अन्त में सिद्धिगति को प्राप्त किया । - ********** - आठवाँ वर्ग इस वर्ग के दस अध्ययन हैं १. काली २. सुकाली ३. महाकाली ४. कृष्णा ५. सुकृष्णा ६. महाकृष्णा ७ वीरकृष्णा ८. रामकृष्णा ६. पितृसेनकृष्णा और १० . महासेनकृष्णा । ये सभी श्रेणिक राजा की रानियाँ थी । इन्होंने श्रेणिक राजा के देहावसान के बाद दीक्षा ग्रहण की। श्रेणिक राजा के देहावसान के पश्चात् उसका पुत्र कोणिक राजा बना उसने अपनी राजधानी चम्पानगरी बनाई। राज्य का संचालन करते हुए उसके सहोदर लघुभ्राता वेहलकुमार के साथ हार और हाथी को हथियाने का विवाद हो गया, जिसके कारण राजा चेटक के साथ वैशाली में महाशिला कंटक और रथमूसल संग्राम हुआ, जिसमें काली आदि दस रानियों के कालकुमार आदि दसों राजकुमार मृत्यु को प्राप्त हो गये । उस समय श्रमण भगवान् महावीर स्वामी चम्पानगरी में विराजते थे। उनकी माताओं ने श्रमण भगवान् महावीर - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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