Book Title: Anekant 2001 Book 54 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 13
________________ 10 अनेकान्त / 54-1 ca जैन समाज में यह चौथा सम्प्रदाय कहानजी स्वामी और उनके अनुयायियों की प्रवृत्तियों को देखकर कुछ लोगों को यह भी आशंका होने लगी है कि कहीं जैन समाज में यह चौथा सम्प्रदाय तो कायम होने नहीं जा रहा है? यह तो दिगम्बर, श्वेताम्बर और स्थानकवासी सम्प्रदायों की कुछ-कुछ अपनी बातों को लेकर तीनों कं मूल में ही कुठाराघात करेगा और उन्हें अध्यात्मिकता के एकान्तगर्त में धकेलकर, एकान्त मिथ्यादृष्टि बनाने में यत्नशील होगा । श्रावक तथा मुनिधर्म के रूप में सच्चारित्र और शुभ- भावों का उत्थापन कर लोगों को केवल आत्मार्थी बनाने की चेष्टा में संलग्न रहेगा। उनके द्वारा शुद्धात्मा के गीत गाये जायेंगे, परन्तु शुद्धात्मा तक पहुँचने का मार्ग पास में न होने से लोग 'इतो भ्रष्टास्ततो भ्रष्टाः' की दशा को प्राप्त होंगे। उन्हें अनाचार का डर नहीं रहेगा, वे समझेंगे कि जब आत्मा एकान्तत: अबद्ध है, सर्व प्रकार के कर्मबंधनों से रहित शुद्ध-बुद्ध है, और उस पर वस्तुत: किसी भी कर्म का कोई असर नहीं होता, तब बंधन से छूटने तथा मुक्ति प्राप्त करने का यत्न भी कैसा ? - पापकर्म जब आत्मा का कुछ भी बिगाड़ नहीं कर सकते तब उनमें प्रवृत्त लेने में भय कौन करेगा? पाप और पुण्य दोनों समान, दोनों ही अधर्म ठहरेंगे तब पुण्य जैसे कष्टसाध्य कार्य में कौन प्रवृत्त होना चाहेगा? इस तरह यह चौथा सम्प्रदाय किसी दिन पिछले तीनों सम्प्रदायों का हितशत्रु बनकर, भारी संघर्ष उत्पन्न करेगा और जैन समाज को वह हानि पहुँचायेगा जो अब तक तीनों सम्प्रदायों के संघर्ष द्वारा नहीं पहुँच सकी है, क्योंकि तीनों में प्रायः कुछ ऊपरी बातों में ही संघर्ष है, भीतरी सिद्धान्त की बातों में नहीं। इस चौथे सम्प्रदाय द्वारा तो जिनशासन का मूलरूप ही परिवर्तित हो जायेगा। वह अनेकान्त के रूप में न रहकर आध्यात्मिक एकान्त का रूप धारण करने के लिए बाध्य होगा। - अनेकान्त / जुलाई 1954/पृ. 8 आदरणीय मुख्त्यार सा. के उपर्युक्त आकलन को आज के परिप्रेक्ष्य में परखा जाय तो हम पाते हैं कि उनका आकलन कितना सटीक था। अब चौथा सम्प्रदाय हकीकत के रूप में सामने है। इस सम्प्रदाय ने अपना रबड़ COCOCK ceca

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