Book Title: Alpaparichit Siddhantik Shabdakosha Part 2
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 12
________________ स्वल्पम् ॥ जमो चोवीसाए तित्थयराणं उसमाइमहावीरपजवसाणाणं ॥ अमोने जणांवता हर्ष थाय छे के आगमोद्धारकरीए संकलित अल्पपरिचितसैद्धान्तिकशब्दकोषना प्रथम भागर्नु संपादन कार्य अमोने (मने तथा स्व० मुनिश्रीक्षेमकरसागरजीने) मल्यु हतुं अने ते प्रथम भागनुं कार्य अमे पूर्ण कयु हतुं. तेना बाकी रहेला बीजा भागोनुं संपादन करवानुं कार्य मने स० २०१५ मां मल्यु. ते कार्य में यथाशक्य शरू कयु, एना परिणामे आजे तेनो बीजो भाग ‘क थी झ' सुधीनो पूर्ण कर्यो छे. अने तेनी आगलन सम्पादन कार्य पण चालु ज राख्युं छे. अमोए यत्किंचित् आ कोषना अंगेनुं मार्गदर्शन प्रथम भागमा सम्पादकना वक्तव्यमा आप्युं छे, तेथी अत्यारे ते अंगे काई विशेष कहेवू नथी, पण त्रीजा के चोथा भागमां ज्यारे प्रस्तावना आपीशं ते वखते लखवानी इच्छा छे. - प्रसंगवशात् एटलं जणावq जोइए के-अमारी सम्पादक बेलडीए ‘क थी झ' सुधीनुं मैटर लगभग तैयार कर्यु हतुं पण नवी प्रेस कोपी बनाववानी हती अने काईक सुधारो करवानो हतो. एटला पुरतुंज ते अधूरं हतुं. एटले आ बीजा भागनी अंदर तो रंधायेलु खावानुं हतुं. पण ट थी मांडीने मेलवेला, अधूरा मेलवेला, नहि मेलवेला, बधाय अक्षोरोनुं कार्य मारे करवानुं हतुं. कारणके मारा जोडीदार स्व. मुनिश्री क्षेमकरसागरजी सं० २०११ ना चैत्र वदी०)) नी रात्रे पोणा अगीआर वागे झेरी जानवरना करडवाथी कालधर्म पाम्या अटले वैशाख महीनाथी जवाबदारी मारा एकलाने शिरे आवी. परंतु गुरुदेवश्रीना पुण्य प्रतापे ते जवाबदारी हुँ उठावी शक्यो अने आ बीजा भागनुं सम्पादन करी शक्यो. अटले हवे ट थी पचास टका तैयार करेला मैटरने तैयार करवू अने सम्पादन करवू ए बधीए जवाबदारी मारे शिर रही. आ भागनी अंदर ‘क थी झ' सुधीना अक्षरो आपेला छे. पण त्रीजा अने चोथा भागमा 'ट थी ह' सुधीना अक्षरो अने ज्ञाताजी विगेरेना तेमज बीजा मेलवतां भिन्न भिन्न नीकलेला शब्दो तेम ज व्याकरणना 'उणादिशब्दो' अने देशी नाममालाना शब्दो परिशिष्टमा आपवानुं विचायु छे. संज्ञापत्र, पत्रांकसूची अने शुद्धिपत्र आमां आपवामां आव्यां छे. वली शेठ देवचंद लालभाई० (आ फंडना) नो देवानंदाङ्कमांनुं मैटर पाना १ थी ४४ आपवामां आव्या छे. तेमां पाना १ थी १० भेट प्रचार योजना. पाना १ थी ३९ प्रसिद्ध थएला ग्रंथोनी यादी अने ४० थी ४४ ग्रंथ प्रकाशन नवी योजना एटलुं आपवामां आव्युं छे. संकलनकार परमगुरुदेवना चरणे तो आ सरज मस्तक सदाए नमेलु ज छे. मने आ संपादननी अंदर मदद करनार मुनिश्रीप्रबोधसागरजी तथा मुनिश्रीप्रमोदसागरजी ने (गुरुशिष्य बेलडीने) याद करुं छु. तेम ज बीजाओए मने सहाय करी होय ते बधानो हुँ ऋणी छ. एक वात जरूर याद देवी घटे छे के मने उत्साह आपवामां भाई श्रीकेशरीचंद झवेरी तो छे ज. सं० २०२० पोष वद १ मंगलवार आगमोद्धारक उपसंपदाप्राप्त ठि. नवरंगपुरा, पोस्ट पासे, चरणरेणु जेन उपाश्रय कंचन. अमदावाद नं. ९ लि. Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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