Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Author(s): Sudharmaswami, Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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| गण्हउ आयंबिलमेव निल्लेवं ॥७॥ जइ से न जोगहाणी संपइ एसे व होइ तो खाओ । खमणंतरेण आयंबिलं तु नियम तवं
कुणइ ॥८॥ हेट्ठावणि कोलसगा सोवीरगकूरभोइणो मणुया । जइ तेऽवि जति तहा किं नाम जई न जाविति ? ॥९॥ तिय सीयं समणाणं तिय उण्ह गिहीण तेणऽणुनायं । तत्काईणं गहणं कट्टरमाईसु भइयव्यं ॥६२०॥ आहारउवहिसेजा तिण्णिवि उपहा गिहीण सीएऽवि तेण उ जीरइ तेसिं दुहओ उसिणेण आहारो ॥१॥एयाई चिय तिन्निवि जईण सीयाई होति गिम्हेवि । तेणुवहम्मइ | अग्गी तओ य दोसा अजीराई ॥२॥ ओयणमंडगसत्तुगकुम्मासारायमासकलवट्टा । तूयरिमसूरमुग्गा मासा य अलेवडा सुक्का ॥३॥ उब्भिनपिज्जकंगू तक्कोल्लणसूवकंजिकढियाई ।एए 3 अप्पलेवा पच्छाकम्मं तहिं भइयं ॥४॥खीर दहि जाउ कट्टर तेल्ल घेयं फाणियं सपिंडरसं । इच्चाई बहुलेवं पच्छाकम्मं तहिं नियमा ॥५॥ संसट्टेयरहत्थो मत्तोऽविय दव्व सावसेसियरं । एएसु अट्ठ भंगा नियमा गहणं तु ओएसु ॥६॥ सच्चित्ते अचित्ते मीसग तह छड्डणे य चउभंगो । चउभंगे पडिसेहो गहणे आणाइणो दोसा ॥७॥ उसिणस्स छड्डणे देतओ व डझेझ कायदाहो वा । सीयपडणमि काया पडिए महुबिंदुआहरणं ॥८॥णामं ठवणा दविए भावे घासेसणा मुणेयव्वा ।दव्वे मच्छाहरणं भावंमि य होइ पंचविह। ॥९॥ चरिय व कप्पियं वा आहरणं दुविहमेव नायव्वं । अत्थस्स साहणट्ठा इंधणमिव ओयणटाए १६३०॥अह मंसंमि पहीणे झायंत मच्छियं भणइ मच्छो । किं झायसि तं एवं? सुण ताव जहा अहिरिओऽसि ॥१॥तिबलागमुहम्मुक्को, तिक्खुत्तो वलयामुहे। तिसत्तक्खुत्तो जालेणं, सइ छिन्नोदए दहे ॥२॥एयारिसं ममं सत्तं, सढं घट्टियघट्टणी ॥ श्रीउत्तराध्ययनसूत्रं ॥
पू. सागरजी म. संशोधित
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