Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Author(s): Sudharmaswami, Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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पलितंमि, तस्स गेहस्स जो पहू। सारभंडाणि नीणेइ, असारं अवउज्झइ॥२॥ एवं लोए पलितमि, जराए मरणेण यो अप्पाणं तारइस्सामि, तुब्भेहिं अणुमत्रिओ॥३॥ तं बिंतऽभ्मापियरो, सामन्नं पुत्त! दुच्च। गुणाणं तु सहस्साणि, धारेयव्वाई भिक्खु॥४॥ समया सव्वभूएसुं, सत्तुमित्तेसु वा जगे। पाणाइवायविरई, जावज्जीवाय दुक्करं ॥५॥ निच्चकालऽप्पमत्तेणं, मुसावायविवजणी भासियव्वं हियं सच्चं, निच्चाउत्तेण दुकरं ॥६॥ दंतसोहणमाइस्स, अदनस्स विवज्जणी अणवच्चेसणिज्जस्स, गिण्हणा अवि दुक्करं ॥७॥विरई अबंभचेरस्स, कामभोगरसन्नुणा उग्गं महव्वयं बंभ, धारेयव्वं सुदक्करं ॥८॥धणधनपेसवागेसु, परिगहविवजणी सव्वारंभपरिच्चागो, निम्ममत्तं सुदुक्करं ॥९॥चविहेऽविआहारे, राईभोयणवज्जणा संनिहीसंचओ चेव, वन्जेयव्वो सुदुक्करं ॥६३०॥ छुहा तण्हा य सीउण्हं, दंसमसगा य वेयणा। अक्कोसा दुक्खसिज्जा य, तणफासा जल्लमेव य॥१॥ तालणा तज्जणा चेव, वहबंधपरीसहा। दुक्खं भिक्खायरिया, जायणा य अलाभया॥२॥ कावोया जा इमा वित्ती, केसलोओ य दारुणो। दुक्खं बंभव्वयं धोरं, धारेउ अमहप्पणो॥३॥ सुहोइओ तुम पुत्ता!, सुकुमालो सुमजिओ। न हुसी पभू तुम पुत्ता!, सामन्त्रमणुपालिया॥४॥ जावजीवमविस्सामो, गुणाणं तु महब्भो। गरुओ लोहभारुव्द, जो पुत्ता! होइ दुव्वहो॥५॥आगासे गंगसोउव्व, पडिसोउव्व दुत्तरो। बाहाहिं सागरो चेव, तरियव्यो य गुणोयही ॥६॥वालुयाकवले चेव, निरस्साए 3 संजमे। असिधारागमणं चेव, दुक्करं चरिउ तवो ॥७॥ अहीवेगंतदिट्ठीए, चरित्ने पुत्त! दुच्चरे। जवा लोहमया चेव, चावेयव्वा सुदुक्करं ॥८॥ जहा अग्गिसिहा दित्ता, पाउं होइ सुदुक्कर।। ॥ श्रीउत्तराध्ययनसूत्रं ॥
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पू. सागरजी म. संशोधित
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