Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Author(s): Sudharmaswami, Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 85
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalasteagarsuri Gyanmandir संतेए तहिया नव॥४॥ तहियाणं तु भावाणं, सब्भावे उवएसणी भावेण सद्दहंतस्स, सम्मत्तं ति( तं) वियाहिय॥५॥ निसग्गुवएसरुई,|| आणारुइ सुत्तबीयरुइमेव। अभिगमवित्थाररुई, किरियासंखेवधम्मरुई॥६॥ भूअत्थेणाहिगया जीवाऽजीवा य पुण्ण पावं च। सहसंमुइआ आसवसंवर रोएइ ३ निसगो॥७॥ जो जिणदिढे भावे चविहे सदहाइ सयमेवो एमेव नऽन्नहत्ति य निसग्गरुइत्ति नायव्वो॥८॥ एए चेव ७ भावे उवढे जो परेण सद्दहइ। छउमत्थेण जिणेण व उवएसरुइति नायव्वो॥९॥ रागो दोसो मोहो अन्नाणं जस्स अवगयं होइ। आगाए रोयंतो सो खलु आणारुईनाम॥१०८०॥ जो सुत्तमहिज्जतो सुएण ओगाहई उ सम्मत्त। अंगण बाहिरेण व सो सुत्तरुइत्ति णायव्यो॥१॥ एगेण अणेगाई पयाइं जो पसरई उ सम्मत्ती उदयव्व तिल्लबिंदू सो बीयरुइत्ति नायव्वो॥२॥ सो होइ अभिगमरुई सुअनाणं जस्स अत्थओ दिट्ठी इकारस अंगाई पइण्णगं दिहिवाओ य॥३॥ दव्वाण सव्वभावा सव्वपमाणेहिं जस्स उवलद्धा सव्वाइं नयविहीहि य वित्थाररुइत्ति नायव्यो॥४॥सणनाणचरित्ते तवविणए सच्चसमिइगुत्तीसु।जो किरियाभावरुई| सो खलु किरियारुई नाम॥५॥अणभिग्गहियकुदिट्ठी संखेवरुइत्ति होइ नायव्वो। अविसारओ पवयणे अणभिग्गहिओ य सेसेसु॥६॥ जो अस्थिकायधम्म सुयधम्मं खलु चरित्तधम्म च। सहहइ जिणाभिहियं सो धम्मरुइत्ति नायव्यो॥७॥ परमत्थसंथवो वा सुदिपरमत्थसेवणा वावि। वावनकुदंसणवजणा य सम्मत्तसहहणा॥८॥ नत्थि चरित्तं सम्मत्तविहूणं दंसणे 3 भइयव्व। सम्भत्तचरित्ताई जुगवं पुव्वं व सम्मत्त॥९॥णादसणिस्स नाणं नाणेण विणा न हुंति चरणगुणा। अगुणिस्स नत्थि मुक्खो नत्थि || श्रीउत्तराध्ययनसूत्रं ॥ पू. सागरजी म. संशोधित | ७५ । For Private And Personal

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