Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Author(s): Sudharmaswami, Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 91
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirt.com Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir नियत्तेइ, तओ पच्छ। चाउरंत संसारकंतारं वीईवयइ ४६। संभोगपच्चक्खाणेणं भंते ! जीवे किं जणेइ ?, संभो० आलंबणाई खवेइ, निरालंबणस्स य आययट्ठिया जोगा भवन्ति, सएणं लाभेणं संतूसइ परस्स लाभं नो आसाएइ नो तक्केइ नो पीहेइ नो पत्थइ नो अभिलसइ, पस्स लाभं अणासाएमाणे अतक्केमाणे अपीहेमाणे अपत्थेमाणे अणभिलसेमाणे दुच्चं सुहसिज उवसंपज्जित्ताणं |विहरइ १४७) उवहिपच्चक्खाणेणं भंते ! जीवे किं जणेइ?, उव० अपलिमंथं जणेइ, निरुवहिए णं जीवे निईखे उवहिमंतरण य न संकिलिस्सइ १४८ आहारपच्चक्खाणेणं भंते ! जीवे किं जणेइ ?. आहा० जीवियासंसप्पओगं वुच्छिदइ, जीवियासंसप्पओगं| वुच्छिदित्ता जीवे आहारमंतरेण न संकिलिस्सइ १४९। कसायपच्चक्खाणेणं भंते ! जीवे किं जणेइ?, कसा० वीयरायभावं जणेइ, वीयरायभावं पडिवन्नेऽविय णं जीवे समसुहदुक्खे भवइ ५० जोगपच्चक्खाणेणं भंते!० अजोगयं जणेइ, अजोगी णं जीवे नवं कम्मन बन्धइ पुव्वबद्धं निजरेइ ५१। सरीरपच्चक्खाणेणं भंते० सिद्धाइसयगुणतणं निवत्तेइ, सिद्धाइसयगुणसंपन्ने य णं जीवे लोगग्गभावमुवगए परमसुही भवइ ५२। सहायपच्चक्खाणेणं भंते० एगीभावं जणेइ, एगीभावभूए य जीवे एगग्गं भविमाणे अप्पसद्दे अप्पझंझे अप्पकलहे अप्पकसाए अभ्यतुमंतुमे संजमबहुले संवरबहुले समाहिए आविभवइ ५३। भत्तपच्चक्खाणेणं भंते० अणेगाई भवसयाई निरंभइ ५४। सब्भावपच्चक्खाणेणं भंते० अनियहि जणयइ, अनियष्टि पडिवन्ने य अणगारे चत्तारि केवलिकम्मंसे खवेइ, तंजहा-वेयणिजं आउयं नामं गोयं, तओ पच्छा सिझ३० १५५१ पडिरूवयाए णं भंते० लाघवियं जणेइ, In श्रीउत्तराध्ययनसूत्रं ॥ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal

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