Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Author(s): Sudharmaswami, Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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नीलाए पलियमसंखं च उक्कोसा ॥१३४०॥ जा नीलाइ ठिई खलु उक्कोसा सा उ समयमभहिया। जहन्नेणं काअए पलियमसंखं च उक्कोसा॥१॥ तेण परं वुच्छामी तेऊलेसा जहा सुरगणाणी भवणवइवाणमंतरजोइसवेमाणियाणं च॥२॥ पलिओवमं जहन्ना उक्कोसा सागरा उ दुण्हऽहिया। पलियमसंखिज्जेणं होई भागेण तेऊए॥३॥ दसवाससहस्साई तेऊइ ठिई जहन्निया होइ। दुन्नुदही पलिओवम असंखभागं च उक्कोसा॥४॥जा तेजइ ठिई खलु उक्कोसा सा 3 समयमभहिया। जहन्नेण पम्हाए दस मुहुत्तहियाई उक्कोसा।जा पम्हाइ० जहन्नेणं सुक्काए तित्तीस मुत्तमब्भहिया॥६॥ किण्हा नीला काऊ तित्रिवि लेसाउ अहम्मलेसाउएयाहिं तिहिवि जीवो दुग्गई उववज्जई ॥७॥ तेऊ पम्हा सुक्का तन्निवि एयाउ धम्मलेसा। एयाहिं तिहिवि' जीवो सुग्गई उववज्जई॥८॥ लेसाहिं सव्वाहिं पढमे समयंमि परिणयाहिं तु न हु कस्सइ उववत्ती परे भवे अस्थि जीवस्स॥९॥ लेसाहिं सव्वाहिं चरमे समयंमि परिणयाहिं तु। न०॥१३५०॥ अंतमुहत्तंमि गए अंतमुत्तमि सेसए चेवा लेसाहिं परिणयाहिं जीवा गच्छंति परलोय॥१॥ तम्हा एयासि लेसाणं, अणुभावं वियाणिया। अप्पसत्थाउ वज्जित्ता, पसत्थाओ अहिए॥१३५२॥ त्ति बेमि, लेसज्झ्यणं ३४॥
सुणेह मे एगमणा, भग्गं सम्वन्नु(बुद्धेहिं) देसियो जमायरंतो भिक्खू, दुक्खाणंतको भवे॥३॥ गिहवासं परिच्चज्जा, पव्वजामस्सिए मुणी। इमे संगे वियाणिज्जा, जेहिं सजति माणवा॥४॥ तहेव हिंसं अलियं, चोजं अब्बभसेवणी इच्छाकामं च
लोभं च, संजओ परिवजए॥५॥ मणोहरं चित्तधरं, मल्लधूवणवासियो सकवाडं पंडरुल्लोयं, मणसावि न पत्थए ॥३॥ इंदियाणि In श्रीउत्तराध्ययनसूत्रं ॥
पू. सागरजी म. संशोधित
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