Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Author(s): Sudharmaswami, Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 113
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobaim.org Acharya Shri Kailashsagarsur Gyanmandit जीवगणा, नाणदसणसनिया। अलं सुह संपत्ता, उवमा जस्स नत्यि ॥९॥ लोएगदेसे ते सव्वे, नाणदंसणसनिया || संसारपारनिथिन्ना, सिद्धिं वरगई गया॥१४४०॥ संसारत्था उ जे जीवा, दुविहा ते वियाहिया। तसा यथावरा चेव, थावरा तिविहा तहिं॥१॥ पुढवी आउजीवा य, तहेव य वणस्सई इच्चेए थावरा तिविही, तेसिं भेए सुणेह मे॥२॥ दुविहा पुढविजीवा 3, सुहुमा बायरा तहा। पज्जत्तमप्पजत्ता, एवमेव दुहा पुणो॥३॥ बायरा जे उ प्रज्जत्ता, दुविहा ते वियाहिया। सण्हा खरा य बोद्धव्वा, सण्हा सत्तविहा तहिं ॥४॥ किण्हा नीला यरुहिरा य, हालिहा सुक्किला तहा। पंडुपणग मट्टिया, खरा छत्तीसईविहा॥५॥ पुढवी यसक्का वालुया य उवले सिला य लोणूसे। अयतउयतंबसीसगरुप्पसुवने य वइरे य॥६॥ हरियाले हिंगुलुए मणोसिला सासगंजण पवाले। अब्भपडलऽब्भवालुय बायरकाए मणिविहाणा॥७॥ गोभिज्जए य रुयगे अंके फलिहे य लोहियक्खे या मरगय भसारगल्ले भुयमोयग इंदनीले य॥८॥ चंदण गेरुय हंसगब्बे पुलए सोगंधिए य बोद्धव्वे। चंदप्पम वेरुलिए जलकंते सूरकंते य॥९॥ एए खरपुढवीए, भेया छत्तीसमाहिया। एगविहमनाणत्ता, सुहमा तत्थ वियाहिया॥१४५०॥ सुहमा य सव्वलोगमि, लोगदेसे य बाय।। एत्तो कालविभागं तु, तेसिं वुच्छं चव्विहं॥१॥ संतई पप्पऽणाईया, अपज्जवसियाविया ठिई पडुच्च साईया, सपज्जवसियाविय॥२॥ बावीससहस्साई, वासाणुक्कोसिया भवे आउठिई पुढवीणं, अंतोमुहुत्तं जहनिया॥३॥ असंखकालमुक्कोसा, अंतमुहत्तं जहन्नयो कायलिई पुढवीणं, कायं तु अमुंचओ॥४॥अणंतकालमुक्कोसं, अंतोमुहुत्तं जहन्नयो विजमि सए काए, पुढविजीवाण अंतरं ॥५॥ ॥ श्रीउत्ताध्ययनसूत्रं ॥ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal

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