Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Author(s): Sudharmaswami, Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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केवलं नाणं, सासयं परिनिव्वुडे ॥१३७३॥ ति बेमि, अणगारमग्गं ३५॥
जीवाजीवविभत्ति मे, सुमेहेगमणा इज जाणिऊण भिक्खू, सम्म जयइ संजमे॥४॥ जीवा चेव अजीवा य, एस लोए वियाहिए। अजीवदेसमागासे, ओलए से वियाहिए॥५॥ दव्वओ खित्तओ चेव, कालओ भावओ तहा। परूवणा तेसिं भवे, जीवाणमजीवाण य॥६॥रूविणो चेवऽरूवा य, अजीवा दुविहा भव।अरूवी दसहा वुत्ता, रूविणोऽविचाविहा॥७॥धम्मस्थिकाए तहेसे, तप्पएसे य आहिए। अधमे तस्स देसे य, तप्पएसे य आहिए॥८॥ आगासे,तस्स देसे य, तप्पएसे य आहिए। अद्धासमए चेव, अरूवी दसहा भवे ॥९॥ धमाधमे य दोऽवेए, लोगभित्ता वियाहिया। लोगालोगे य आगासे, समए समयखित्तिए॥१३८०॥ धमाधम्मागासा, तित्रिवि एए अणाइया। अपज्जवसिया चेव, सव्वद्धं तु वियाहिया॥१॥ समएवि संतई पप्प, एवमेव वियाहिए। आएसं पथ्य साईए, सपजवसिएऽविय॥२॥ खंधा य खंधदेसा य, तप्पएसा तहेव यो परमाणुणो अ बोद्धव्वा, रुविणो अ चाविहा॥३॥ एगत्तेण पुहुत्तेणं, खंधा य परमाणू ओलोएगदेसे लोए अ, भइअव्वा ते 3 खित्तओ। एत्तो कालविभागं तु, तेसिं वुच्छं चव्विहं ॥४॥ संतई पप्प तेऽणाई, अप्पज्जवसिआविओ ठिई पडुच्च साईआ, सप्पज्जवसिआविओ५॥ असंखकालमुक्कोस, इदं समयं जहन्नयो अजीवाण य रूवीणं, लिई एसा विआहिआ॥६॥ अणंतकालमुक्कोस, इक्वं समयं जहण्णय। अजीवाण य रूवीणं, अंतरेयं विआहि॥७॥ वत्रओ गंधओ चेव, रसओ फासओ तहा। संठाणओ य विन्नेओ, परिणामो तेसिं पंचहा॥॥ || श्रीउत्तराध्ययनसूत्रं ॥
पू. सागरजी म. संसमिया
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