Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Author(s): Sudharmaswami, Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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पयलपयला यो तत्तो य थीणगिद्धी पंचमा होइ नायव्वा ॥१॥ चक्खुमचक्खू ओहिस्स, दंसणे, केवले य आवरणे । एवं तु नवविगणं, नायव्वं दंसणावरणं ॥ २ ॥ वेयणियंपि हु (य) दुविहं, सायमसायं च आहिय। सायस्स उ बहू भेया, एमेवासायस्सवि ॥३॥ मोहणियंपिय दुविहं, दंसणे चरणे तहा। दंसणे तिविहं वृत्तं, चरणे दुविहं भवे ॥४॥ सम्मत्तं चैव मिच्छत्तं, सम्मामिच्छत्तमेव या एयाओ तिन्नि पयडीओ, मोहणिज्जस्स दंसणे ॥५ ॥ चरितमोहणं कम्मं, दुविहं तु वियाहियं । कसायमोहणिज्जं च, नोकसायं तहेव य॥६॥ सोलसविह भेएणं, कम्मं तु कसायजं। सत्तविहं नव विहं वा, कम्मं नोकसायजं ॥७॥ नेरइयतिरिक्खाऊ, मणुस्साउं तहेव य। देवाऊयं चउत्थं तु, आउकम्मं चउव्विहं ॥८ ॥ नामकम्मं दुविहं, सुहमसुहं च आहिय। सुहस्स उ बहू भेया, एमेव य असुहस्सवि॥९॥ गोयं कम्मं दुविहं, उच्चं नीयं च आहियं । उच्चं अट्ठविहं होइ, एवं नीयंपि आहियं ॥ १२८० ॥ दाणे लाभे य भोगे य, उवभोगे वीरिए तहा | पंचविहमन्तरायं, समासेण वियाहियं ॥१॥ एयाओ मूलपयडीओ, उत्तराओ अ आहिया । पए सग्गं खित्तकाले य, भावं चादुत्तरं सुण॥२॥ सव्वेसिं चेव कम्माणं, पएसग्गमणंतगं। गंठिप(य) सत्ताडणाई ( ईयं), अंतो सिद्धाण आहियं ॥ ३ ॥ सव्वजीवाण कम्मं तु, संगहे छद्दिसागयं । सव्र्व्वसुवि पएसेसु, सव्वं सव्वेण बद्धगं ॥४॥ उदहीसरिसनामाणं, तीसई कोडिकोडीओ। उक्कोसिया होड़ ठिई, अंतमुहुत्तं जहनिया ॥ ५॥ आवरणिज्जाण दुण्हंपि, वेयणिज्जे तहेव या अंतराए य कम्मंमि, ठिई एसा वियाहिया ॥६॥ उयही सरिसनामाणं, सत्तरिं कोडिकोडिओ | मोहणिजस्स उक्कोसा, अंतमुहत्तं जहन्निया ॥७॥ तित्तीससागरोवमा,
॥ श्रीउत्तराध्ययनसूत्रं ॥
पू. सागरजी म. संशोधित
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