Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Author(s): Sudharmaswami, Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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अमुक्खस्स निव्वाणं॥१०९०॥ निस्संकिय निकंखिय निव्वितिगिच्छं अमूढदिट्ठी यो उववूह थिरीकरणं वच्छल्ल पभावणेऽतुते॥१॥l सामाइयऽत्थ पढम छेदोवद्वावणं भवे बितिया परिहारविसुद्धीयं सुहुमं तह संपरायं च॥२॥अकसाय अहक्खायं, छउभत्थस्स जिणस्स वा। एयं चयरित्तकर, चारित्तं होइ आहिय॥३॥ तवो अ दुविहो वुत्तो, बाहिरऽब्र्भतरो तह। । बाहिरी छव्विहो वुत्तो, एवमभिंतरो तवो ॥४॥ नाणेण जाणई भावे, सम्मत्तेण य सद्दहे । चरित्तेण निगिण्हाइ तवेण परिसुझई ॥५॥ खवित्ता पुवकम्माई संजमेण तवेण य । सव्वदुक्खप्पहीणहा, पक्कमंति महेसिणो ॥१०९६॥ ति बेमि, मोक्खमग्गगइअझयणं २८॥
सुमे आउसंतेण भगवया एवमक्खायं-इह खलु सम्मत्तपरक्कमे नामऽज्झ्यणे समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइए जं सम्म सद्दहइत्ता पत्तियाइत्ता रोयइत्ता फासइत्ता पालइत्ता सोहइत्ता तीरइत्ता किट्टइत्ता आराहइत्ता आणाए अणुपालइत्ता बहवे जीवा सिझंति बुझंति मुच्चंति परिनिव्वायंति सव्वदुक्खाणमंतं रेंति ११३। तस्स णं अयमढे एवमाहिज्जइ, तंजहा संवेगे निव्वेए धम्मसद्धा गुरुसाहम्मियसुस्सूसणया आलोयणया निंदणया गरिहणया सामाइए चउवीसत्थए वंदणए १० पडिक्कमणे काउस्सग्गे पच्चक्खाणे थयथुइमंगले कालपडिलेहणया पायच्छित्तकरणे ख्मावणया सझाए वायणया परिपुच्छणया २० परियट्टणया अणुप्पेहा धमकहा सुयस्स आराहणया एगग्गमणसंनिवेसणया संजमे तवे वोदाणे सुहसाए अप्पडिबद्धया ३० विवित्तसयणासणसेवणया विणियट्टणया संभोगपच्चक्खाणे उवहिपच्चक्खाणे आहारपच्चक्खाणे कसायपच्चक्खाणे जोगपच्चक्खाणे सरीरपच्चक्खाणे ॥ श्रीउत्तराध्ययनसूत्रं ॥
पू. सागरजी म. संशोधित
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