Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Author(s): Sudharmaswami, Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 84
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Sh Kailashsagarsuri Gyanmandir चइत्ताणं, दढं पगिण्हइ तवं॥९॥ मिउमद्दवसंपन्ने, गंभीरे सुसमाहिए। विहरइ महिं महप्या, सीऊभूएण अप्पण॥१०६०॥ त्ति बेमि,|| खलुंकिज २७॥ __ मुक्खमागगई तच्चं (त्थं), सुणेह जिणभासियो चउकारणसंजुत्तं, नाणदंसणलक्खणं॥१॥ नाणं च दसणं चेव, चरित्तं च तवो तहा। एस मग्गुत्ति पन्नत्तो, जिणेहिं वरदंसिहि ॥२॥ नाणं च दंसणं चेव, चरित्तं च तवो तहा। एयं मग्गमणुप्पत्ता, जीवा, गच्छंति सुग्गई॥३॥ तत्थ पंचविहं नाणं, सुअं आभिणिबोहियो ओहियनाणं तइयं, मणनाणं च केवल४॥ एयं पंचविहं नाणं, दव्वाण य गुणाण यो पजवाणं च सव्वेसिं, नाणं नाणीहिं देसिय॥५॥ गुणाणं आसओ दव्वं, एगदव्वस्सिया गुणा। लक्षणं पज्जवाणं तु, उभओ अस्सिया भवे॥६॥धम्मो अधम्मो आगासं, कालो पुग्गल जंतवो एस लोगुत्ति पनत्तो, जिणेहिं वरदंसिहि ॥७॥ धम्मो अधम्मो आगासं, दव्वं इक्विकमाहियो अणंताणि य दव्वाणि, कालो पुग्गल जंतवो॥८॥ गइलक्खणो उ धम्मो, अहम्मो ठाणलक्खणो। भायणं सव्वदव्वाणं, नहं ओगाहलक्खणं॥९॥ वत्तणालक्खणो कालो, जीवो उवओगलक्खणो। नाणेणं दंसणेणं व, सुहेण य दुहेण य॥१०७०॥ नाणं च दंसणं चेव, चरित्तं च तवो तहा। वीरियं उवओगो य, एयं जीवस्स लक्खण॥१॥ सबंधयार उज्जोओ, पभा छायाऽऽतवृत्ति वा। वण्णरसगंधफासा, पुग्गलाणं तु लक्खणं॥२॥ एगत्तं च पुहत्तं च, संखा संठाणमेव यो संजोगा य विभागा य, पजवाणं तु लक्खणं॥३॥ जीवाऽजीवा य बंधो य, पुण्णं पावाऽऽसवो तहा। संवरो निजरा मुक्खो, || श्रीउत्तराध्ययनसूत्रं ॥ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal

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