Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Author(s): Sudharmaswami, Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 88
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.ong Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir | अणच्चासायणसीले नेरइयतिरिक्खजोणियमणुस्सदेवदुग्गईओ निरुं भइ, वण्णसंजलणभत्तिबहुमाणयाए माणुस्सदेवसुग्गईओ निबंधड़ सिद्धिसुगई च विसोहेइ पसत्थाई च णं विणयमूलाई सव्वकज्जाई साहइ अन्ने य बहवे जीवे विणइत्ता हवइ । १८ । आलोयणाए णं भंते ! जीवे किं जणेइ ?, आलोयणाए मायानियाणमिच्छादरिसणसल्लाणं मुक्खमग्गविग्घाणं अनंतसंसारवद्धणाणं उद्धरणं करेइ उज्जुभावं च जणेइ, उज्जुभावं पडिवन्ने य णं जीवे अमाई इत्थीवेयं णपुंसगवेयं च न बन्धइ पुव्वबद्धं च णं निज्जरइ | १९|| निंदणयाए णं भंते ! जीवे किं जणेइ ?, निंदणयाए पच्छाणुतावं जणेड़ पच्छाणुतावेणं विरज्जमाणे करणगुणसेटिं पडिवज्जइ, करणगुणसेढिपडिवन्ने य अणगारे मोहणिज्जं कम्मं उग्धाएइ | २० | गरिहणाए णं भंते ! जीवे किं जणेइ ?, गरहणाए अपुरक्कारं जणेइ अपुरक्कारगए णं जीवे अप्पसत्थेहिंतो जोगेहिंतो नियत्तइ पसत्थेहि य पडिवज्जइ, पसत्थ जोगं पडिवन्ने य णं अणगारे अनंतघाईपज्जवे खवेइ (२१) सामाइएणं भंते! जीवे किं जणेइ ?, सामाइएणं सावज्जजोगविरइं जणयड़ | २२ | चउवीसत्थएणं भंते ! जीवे किं जणेड़ , चवीसत्थएणं दंसणविसोहिं जगइ | २३ | वंदणएणं भंते ! जीवे किं जणेड़ ?, वंदणएणं! नीयागोयं कम्मं खवेइ उच्चागोयं निबंधइ सोहग्गं च णं अप्पडिहथं आणाफलं निवत्तेइ दाहिणभावं च णं जणेइ । २४ । पडिक्कमणेणं भंते! जीवे किं जणेड़ ? पडिक्कमणेणं वयछिद्दाई पिहेइ, पिहियवयछिद्दे पुण जीवे निरुद्धासवे असबलचरिते अट्टसु पवयणमायासु उवउत्ते अपुहुत्ते सुप्पणिहिए विहरइ (२५) काउस्सग्गेणं भंते! जीवे किं जणेइ ? काउस्सग्गेणं तीयपडुप्पत्रं पायच्छित्तं विसोहइ, ॥ श्रीउत्तराध्ययनसूत्रं ॥ पू. सागरजी म. संशोधित ७८ For Private And Personal

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