Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Author(s): Sudharmaswami, Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

View full book text
Previous | Next

Page 67
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirti.com Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir सहिज्जा ॥७॥ अणुत्रए नावणए महेसी, न यावि पूयं गरिहं च संजए।से उज्जुभावं पडिवज संजए, निव्वाणमगं विरए उदेइ॥८॥l अरइरइसहे पहीणसंथवे, विरए आयहिए पहाणवी परमटुपएहिं चिटुई, छिनसोए अममे अकिंचणे॥९॥ विवित्तलयणाई भइज्ज ताई, निरोवलेवाई असंथडाई। इसीहिं चिनाई महायसेहिं, कारण फासिज्ज परीसहाई॥७८०॥ सण( सणाणनाणोवगए महेसी, अणुत्तरं चरियं धम्मसंचयी अगु)णुत्तरे नाणधरे जसंसी, ओभासई सूरिए वंऽतलिक्खे॥१॥ दुविहं खदेऊण य पुत्रपावं, निरज गाणे सवओ विष्पमुक्के। तरित्ता समुई व महाभवोह, समुद्दपाले अपुणागमं गए॥७८२॥ ति बेमि, समुद्दपालिज्ज २१॥ सोरियपुरंमि नरे, आसि राया महड्ढिए। वसुदेवत्तिनामेणं, रायलक्खणसंजुए॥३॥ तस्स भज्जा दुवे आसि, रोहिणी देवई| तहा। तासिं दुण्हंपि दो पुत्ता, इट्ठा (जे) रामकेसवा॥४॥ सोरियपुरंमि नयरे, आसि राया महड्ढिए। समुद्दविजये नाम, रायलक्खणसंजुए॥५॥ तस्स भजा सिवा नामं, तीसे पुत्तो महायसो भयवं अरिष्टनेमित्ति, लोगनाहे दमीसरे ॥६॥ सोऽरिष्टनेमिनामो अ, लक्खणस्सरसंजुओ।अट्ठसहस्सलक्खणधरो, गोयमो कालगच्छवी ॥७॥वज्जरिसहसंघयणो, समचरंसो झसोदरोतस्स राईमई कन, भजं जायइ केसवो॥८॥अह सा रायवरकत्रा, सुसीला चारुपेहिणी। सव्वलक्खणसंपना, विज्जुसोआमणिप्यभा॥९॥अहाह जणओ तीसे, वासुदेवं महड्डियो इहागच्छउ कुमरो, जा से कनं ददामऽहं ॥७९०॥ सव्वासहीहिं ण्हविओ, क्यकोऊयमंगलो। दिव्वजुयलपरिहिओ, आभरणेहिं विभूसिओ॥१॥ मत्तं च गंधहत्थिं च, वासुदेवस्स जियो आरूढो सोहई अहियं, सिरे चूडामणी ॥ श्रीउत्तराध्ययनसूत्रं ॥ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal

Loading...

Page Navigation
1 ... 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126