Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Author(s): Sudharmaswami, Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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सव्वे उम्मग्गपट्टिया । सम्मगं तु जिणक्खायं, एस मग्गे हि उत्तमे ॥४॥ साहु गोयम! पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो । अन्नोऽवि संसओ मज्झं, तं मे कहसु गोयमा ! ॥५॥ महाउदगवेगेणं, वुज्झमाणाण पाणिणंी सरणं गई पड़ट्टं च, दीवं कं मन्नसी? मुणी ! ॥६॥ अत्थि एगो महादीवो, वारिमज्झे महालओ । महाउदगवेगस्स, गई तत्थ न विज्जई ॥ ७ ॥ दीवे अ इइ के वुत्ते ?, केसी गोयममब्बवी । तओ केसिं बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी ॥८ ॥ जरामरणवेगेणं, वुज्झमाणाण पाणिणी धम्मो दीवो पइट्टा य, गई सरणमुत्तमं ॥ ९ ॥ साह गोयम ! पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो । अन्नोऽवि संसओ मज्झं, तं मे कहसु गोयमा ! ॥ ९०० ॥ अन्नवंसि महोहंसि, नावा विपरिधावई । जंसि गोयममारूढो, कहं पारं गमिस्ससी ? ॥१॥ जा उ अस्साविणी नावा, न सा पारस्स गामिणी । जा निरस्साविणी नावा, सा उ पारस्स गामिणी ॥२॥ नावा अ इड का वुत्ता?, केसी गोयममब्बवी । तओ केसिं बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी ॥३॥ सरीरमाहु नावत्ति, जीवो वुच्चइ नाविओ। संसारो अन्नवो वुत्तो, जं तरंति महे सिणो ॥४॥ साहु गोयम ! पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो । अन्नोऽवि संसओ मज्झं, तं मे कहसु गोयमा ! ॥५॥ अंध्यारे तमे घोरे, चिट्ठेति पाणिणो बहू। को करिस्सइ उज्जोयं?, सव्वलोगंमि पाणिणं ॥६॥ उग्गओ विमलो भाणू, सव्वलोगपभंकरो । सो करिस्सइ उज्जोयं, सव्वलोगंमि पाणिणं ॥७॥ भाणू अ इति के वुत्ते ?, केसी गोयम ॥८ ॥ उग्गओ खीणसंसारो, सव्वण्णू जिणभक्खरो । सो करिस्सइ उज्जोयं?, सव्वलोगंमि पाणिणं ॥९॥ साहु गोयम् ! पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो । अन्नोऽवि संसओ मज्झं, तं मे कहसु गोयमा ! ॥ ९९० ॥ सारीरमाणसे दुक्खे, बज्झ (पच्च )माणाण पाणिणं । खेमं ॥ श्रीउत्तराध्ययनसूत्रं ॥
पू. सागरजी म. संशोधित
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