Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Author(s): Sudharmaswami, Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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भावओ ॥७॥ इंदियत्थे विवज्जित्ता, सज्झायं चेव पंचहा। तम्मुत्ती तप्पुरक्कारे, उवउत्ते रियं रिए ॥ ८ ॥ कोहे माणे य माया य, लोभे य उवउत्तया। हासभ्य ( तहेव भय) मोहरिए विगहासु ( विगहा य) तहेव य ॥९॥ एयाई अट्ठ ठाणाई, परिवज्जित्तु संजओ । असावज्जं मियं काले, भासं भासिज्ज पन्नवं ॥ ९३० ॥ गवेसणाए गहणेयाणेणं), परिभोगेसणाणि य (यजा ) । आहारो वहि सिज्जाए आहारमुवहि सेज्जं च ), एए तिन्नि विसोहए (हिया ) ॥ १ ॥ उग्गमुष्यायणं पढमे, बीए सोहिज्ज एसणं । परिभोगंभि चउक्कं, विसोहिज्ज जयं जई ॥ २ ॥ ओहोवहोवग्गहियं, भंडयं दुविहं मुणी । गिण्हंतो निक्खिवंतो य, पउंजिज्ज इमं विहिं ॥३ ॥ चक्खुसा पडिलेहित्ता, पमज्जिज्ज जयं जई। आदिए निक्खिविज्जा वा, दुहओऽवि समिए सया ॥४॥ उच्चारं पासवणं, खेलं सिंघाण जल्लियं ।। आहारं उवहिं देहं अन्नं वावि तहाविहं ॥ ५ ॥ अणावायमसंलोए, अणावाए चेव होइ संलोए। आवायमसंलोए, आवाए चेव संलोए ॥६॥ अणावायमसंलोए, परस्सऽणुवधाइए। समे अज्झसिरे वावि, अचिरकालकथंमि य॥७॥ विच्छिन्ने दूरभोगाढे, णासन्ने बिलवज्जिए । तसपाणबीयर हिए, उच्चाराईणि वोसिरे ॥८ ॥ एयाओ पंच समिईओ, समासेण वियाहिया । इत्तो उ तओ गुत्तीओ, वुच्छामि अणुपुव्वसो ॥९॥ सच्चा तहेव मोसा य, सच्चामोसा तहेव यो चउत्थी असच्चमोसा ये, भणगुत्ती चउव्विहा ॥ ९४० ॥ संरंभसमारंभे, आरंभे य तहेव यो मणं पवट्टमाणं तु, नियत्तिज्ज जयं जई ॥१॥ सच्चा० । वयं० ॥२॥ संरं० । वयं० ॥३॥ ठाणे निसीयणे चेव, तहेव य तुयट्टणे। उल्लंघणे पल्लंघणे, इंदियाण य जुंजणे ॥४॥ संरं ॥ कार्य० ॥५॥ एयाओ पंच समिईओ, चरणस्स
॥ श्रीउत्तराध्ययनसूत्रं ॥
पू. सागरजी म. संशोधित
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