Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Author(s): Sudharmaswami, Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 81
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www kchairm.org Acharya Sri Kalashsagarsuti Gyanmandit तम्मेव य नक्खत्ते गयणं चउभाग सावसेसंमिवेरत्तियपि काल पडिलेहिता मुणी कुज्जा॥१॥ पुचिल्लंमि चउब्भागे, पडिलेहिताण|| भंडयो गुरुं वंदित्तु सझायं, कुन्जा दुक्खवि मुक्खणिं॥२॥ पोरिसीए चउब्भागे, वंदित्ताण तओ गुरुं। अपडिक्षमित्तुं कालस्स, भायणं पडिलेहए॥३॥ मुहपत्तिं पडिलेहिता, पडिलेहिज्ज गुच्छयो गुच्छगलइयंगुलिओ, वत्थाई पडिलेहए॥४॥ उडढं थिरं अतुरियं पुद्वि ता वत्थमेव पडिलेहे। तो बिइयं पप्फोडे तइयं च पुणो पमजिजा॥५॥ अणच्चावियं अवलियं अणाणुबंधि अभोसलिं चेवा छप्पुरिमा नव खोडापाणीपाणिविसोहणंपमज्जणं)॥६॥आरडा सम्मदा वजेयव्वा य मोसली तइया।पफोडणा चउत्थी विक्खित्ता वेइया छट्ठा॥७॥ पसिढिलपलंबलोला एामोसा अणेगरूवधुणा(या)। कुणति पमाणि ५मायं संकिय गणणावगं कुज्जा॥८॥ अणूणाइरित्तपडिलेहा, अविवच्चासा तहेव यो पढ८ पयं पसत्थं, सेसाणि 3 अप्पसत्थाणि॥९॥ पडिलेहणं कुणतो मिहो कह कुणइ जणवयकहं वा। देइ व पच्चक्खाणं वाएइ सयं पडिच्छइ वा ॥१०२०॥ पुढवीआउक्काएतेऊवणस्सइतसाणी| पडिलेहणापमत्तो छण्हंपि विराहओ होइ॥१॥ तइयाए पोरिसीए, भत्तं पाणं गवेसए। छण्हं अण्णयरागंमि, कारणमंमि समुट्टिए॥२॥ वेयण वेयावच्चे इरियट्ठाए य संजमढ़ाए। तह पाणवत्तियाए छठें पुण धम्मचिंताए॥३॥ निग्गंथो थिइभतो निग्गंथीवि न करिज|| छहिं चेवा ठाणेहिं तु इमेहिं अणइक्कमणा य से होइ॥४॥ आयंके उत्सग्गे तितिक्खया बंभचेरगुत्तीसुं। पाणिदया तवहे || सरीरवुच्छेयणढाए॥५॥अवसेसं भंडगं गिझा, चक्खुसा पडिलेहए। परमद्धजोअणाओ, विहारं विहरे मुणी ॥६॥चउत्थीए पोरिसीए, ॥ श्रीउत्तराध्ययनसूत्रं ॥ | ७१ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal

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