Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Author(s): Sudharmaswami, Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 65
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalasteagarsuri Gyanmandir अणुत्तरं संजम पालियाणी निरासवे संखवियाण कम्म, उवेइ ठाणं विलुत्तमं धुवं॥७५०॥ एवुग्गदंतेऽवि महातवोधणे, महामुणी|| महापइणे महायसे।महानियंठिजमिणं महासुयं, से काहए महया वित्थरेणं॥१॥तुट्ठोय सेणिओराया, इणमुदाहु कयंजली अणाहयं जहाभूयं, सुतु मे उवदंसिय॥२॥ तुझे सुलद्धं खु मणुस्स जम्म, लाभा सुलद्धा य तुमे महेसी!! तुब्भे सणाहा य सबंधवा य, जं भेठिया मग्गि जिणुत्तमाणं॥३॥ तंसि नाहो अणाहाणं, सव्वभूयाण संजया! खामेमि ते महाभाग!, इच्छामि अणुसासि ॥४॥ पुच्छिऊण मए तुब् , झाणविग्धो यजंकओनिमंतिया य भोगेहि, तं सव्वं मरिसेहि मे॥५॥एवं थुणित्ताण से रायसीहो, अणगारसीह परमाइ भत्तिएसओरोहो य सपरियणो (सबंधवो य), धम्माणुरत्तो विमलेण चेयसा॥६॥ ऊससियरोमकूवो, काऊण य पयाहिणी अभिवंदिऊण सिरसा, अइयाओ नराहिवो ॥७॥ इयरोऽवि गुणसमिद्धो निगुत्तिगुत्तो तिदंडविरओ यो विहगइव विष्पमुक्को विहरइ | वसुहं विगयमोह ॥७५८॥ ति बेमि, महानियंठिज्ज २०॥ चंपाए पालिए नाम, सावए आसि वाणिए। महावीरस्स भगवओ, सीसो सो 3 महप्पणो॥९॥ निग्गंथे पावयणे, सावए से विकोविए। पोएण ववहरंते, पिहुंडं नयरमागए।७६०॥ पिहंडे ववहरंतस्स, वाणिओ देइ धूअरं तं ससत्तं पइगिझ, सदेसमह |पत्थिओ॥१॥ अह पालियस्स घरणी, समुदंमि पसवइ। अह दारए तहिं जाए, समुद्दपालित्ति नामए॥२॥ खेमेण आगए चंपं, सावए| वाणिए घरं। संवड्ढई घरे तस्स, दारए से सुहोइए॥३॥ बावत्तरीकलाओ य, सिक्खिए (जाए य) नीइकोविए। जुवणेण य ॥ श्रीउत्तराध्ययनसूत्रं ॥ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal

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