Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Author(s): Sudharmaswami, Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 68
________________ www.kobatirth.org Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir जहा ॥ २ ॥ अह ऊसिएण छत्तेण, चामराहि यं सोहिओ। दसारचक्केण तओ, सव्वओ परिवारिए ॥ ३ ॥ चउरंगिणीए सेणाए, रइयाए जहक्कमं । तुडियाणं सन्निनाएणं, दिव्वेणं गगणं फुसे ॥४ ॥ एयारिसीइ इड्ढीए, जुईए उत्तमाइ यो नियगाओ भवणाओ, निज्जाओ वहिपुंगवो ॥५॥ अह सो तत्थ निज्र्ज्जतो, दिस्स पाणे भयददुए। वाडेहिं पंजरे हिं च, संनिरुद्धे ( बद्धे) सुदुक्खिए ॥६॥ जीवियंतं तु संपत्ते, मंसट्ठा भक्खियव्वए । पासित्ता से महापण्णे, सारहिं इणमब्बवी ॥७॥ कस्स अट्ठा इमे पाणा, एए सव्वे (बहुपाणे) सुहेसिणो। वाडेहिं पंजरे हिं च, संनिरुद्धा य अच्छहि ? ॥८ ॥ अहसारही तओ भणइ, एए भद्दा उ पाणिणो । तुज्झं विवाहकज्जंमि, भोआवेउं बहु जणं ॥९॥ सोऊण तस्स वयणं, बहुपाणिविणासणं । चिंतेड़ से महापत्रे, साणुक्को से जिए हिओ ॥ ८०० ॥ जइ मज्झ कारणा एए, हम्मंति सुबहू जिया । न मे एयं तु निस्सेसं, परलोगे भविस्सई ॥ १ ॥ सो कुंडलाण जुयलं, सुत्तगं च महायसो। आभरणाणि य सव्वाणि, सारहिस्स पणामई ॥ २ ॥ मणपरिणामो अ कओ देवा य जहोइयं समोइन्ना । सव्विड्ढीइ सपरिसा निक्खमणं तस्स काउं जे ॥३॥ देवमणुस्सपरिवुडो सिबियारयणं तओ समारूढो । निक्खमिय बारगाओ खेययंमि ठिओ भयवं ॥४॥ उज्जाणे संपत्तो ओइन्नो उत्तमाउ सीयाओ। साहस्सीए परिवुडो अह निक्खमड़ उ चित्ताहिं ॥ ५ ॥ अह सो सुगंधगंधिए, तुरियं मउअकुंचिए । सयमेव लुंचई केसे पंचट्ठी (ट्टा)हिं समाहिओ ॥६॥ वासुदेवो अ णं भणई, लुत्तकेसं जिइंदियं । इच्छियमणो रहे तुरियं, पावसू तं दमीसर॥ ! ॥७॥ नाणेणं दंसणेणं च, चरित्रेणं तवेण या खंतीए मुत्तीए, वद्धमाणो भवाहि ॥८॥ एवं ते रामकेसवा, दसारा य बहू जणा। अरिट्ठनेमिं वंदित्ता, ॥ श्रीउत्तराध्ययनसूत्रं ॥ पू. सागरजी म. संशोधित ५८ For Private And Personal

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