Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Author(s): Sudharmaswami, Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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चत्तगारवो। समो य सव्वभूएसु, तसेसु थावरे य॥९॥ लाभालाभे सुहे दुक्खे, जीविए मरणे तहा। समो निंदापसंसासु, तहा माणवमाणओ ॥ ६९० ॥ गारवेसु कसाएसु, दंडसल्लभएस या नियत्तो हाससोगाओ, अनियाणो अबंदणो ॥१ ॥ अणिस्सिओ इहं लोए, परलोए अणिस्सिओ। वासी चंदणकप्पो य, असणे अणसणे तहा ॥२॥ अप्पसत्येहिं दारेहिं, सव्वओ पिहियासवो। अज्झष्पझाणजोगेहिं, पसत्थदमसासणो ॥ ३ ॥ एवं नाणेण चरणेण, दंसणेण तवेण या भावणाहिं विसुद्धाहिं, सभ्मं भावित्तु अप्पयं ॥ ४ ॥ बहुयाणि उ वासाणि, सामन्नमणुपा लिया। मासिएण उ भत्तेणं, सिद्धिं पत्तो अणुत्तरं ॥ ५ ॥ एवं करंति संबुद्धा (संपन्न), पंडिया पवियक्खणा । विणियद्वंति भोगेसु, मियापुत्ते जहामिसी ॥६॥ महय्यभावस्स महाजमस्स, मियाइपुत्तस्स निसम्म भासिय। तवप्पहाणं चरियं च उत्तमं, गइप्पहाणं च तिलोअविस्सुतं ॥७॥ वियाणिया दुक्खविवड्ढणं धणं, ममत्तबंधं च महाभयावहं । सुहावहं धम्मधुरं अणुत्तरं, धारेह निव्वाणगुणावहं महं ॥९८॥ भिगापुत्तिज्जं ९१ ॥ सिद्धाण नमो किच्चा, संजयाणं च भावओ। अत्थधम्मगई तच्छं, अणुसिद्धिं सुणेह मे॥९॥पभूयरयणो राया, सेणिओ मगहाहिवो। विहारजत्तं निज्जाओ, मंडिकुच्छिंसि चेइए ॥७०० ॥ नाणादुमलयाइत्रं, नाणापक्खिनिसेवियं । नाणाकुसुमसंछण्णं, उज्जाणं नंदणोवमं ॥१॥ तत्थ सो पासए साहुं, संजयं सुसमाहियं । निसन्नं रुक्खमूलंमि, सुकुमालं सुहोइयं ॥ २ ॥ तस्स रूवं तु पासित्ता, राइणो तंमि संजए। अच्वंतपरमो आसी, अग्लो रूवविम्हओ ॥ ३ ॥ अहो वन्नो अहो रूवं, अहो अज्जस्स सोमया । अहो खंती अहो मुत्ती, अहो भोगे असंगया ॥ ४ ॥ - तस्स पाए उ वंदित्ता, काऊण य पयाहिणं । नाइदूरमणासन्ने, पंजली
॥ श्रीउत्तराध्ययनसूत्रं ॥
पू. सागरजी म. संशोधित
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