Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Author(s): Sudharmaswami, Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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पडिपुच्छई॥५॥ तरुणोऽसि अजो! पव्वइओ, भोगकालंमि संजया!। उवढिओऽसि सामन्ने, एअभटुं सुणेमु ता॥६॥ अणाहो मि|| महारायं!, नाहो मज्झन विजई।अणुकंपयं सुहिं वावि, कंची नाहि तु( भिस )मेमऽहं ॥७॥तो सो पहसिओ राया, सेणिओ मगहाहिवो। एवं ते इड्डिम तस्स, कहं नाहो न विजई?॥८॥होमिनाहो भयंताणं, भोगे भुंजाहि संजया!भित्तनाईपरिवुडो, माणुस्संखुसुदुल्लह ॥९॥ अप्पणावि अणाहोऽसि, सेणिया! मगहाहिवा। अप्पणा अणाहो संतो, कह(स्स)हो भविस्ससि?॥७१०॥ एवं वुत्तो नरिंदो सो, सुसंभंतो सुविम्हिओ। क्यणं अस्सुअपुव्वं, साहुणा विम्हयं निओ॥१॥ अस्सा हत्थी मणुस्सा मे, पुरं अंतेउरं च मे। भुंजामि माणुसे भोए, आणा इस्सरियं च मे॥२॥ एरिसे संपयग्गं( यायं )मि, सव्वकामसमप्पिओ। कहं अणाहो भवई?, मा हु भंते! (भंते! मा हु) मुसं वए॥३॥ न तुम जाणसिऽ( ने अ) नाहस्स, अत्थं पुच्छ( त्थं च पत्थिवा!। जहा अणाहो भवई(सि), सणाहो वा नराहिव!॥४॥ सुणेहि मे महारायं!, अव्वक्खित्तेण चेयसा। जहा अणाहो भवई, जहा मेअ पवत्तिय॥५॥ कोसंबीनाम नयरी, पुराणपुरभेयिणी (नगराण पुडभेयणी) तत्थ आसी पिया मझं, पभूयधणसंचओ६॥ पढमे वए महारायं!, अउला मे अच्छिवेयणा। अहुत्था तिउलो दाहो, सव्वगत्तेसु पत्तिवा!॥७॥ सत्थं जहा परमतिक्खं, सरीरविवरंतरे। पविसिज्ज अरी कुद्धो, एवं मे अच्छिवेयणा॥८॥ तिअं मे अंतरिच्छं, च, उत्तिमंगं च पीडई। इंदासणिसमा घोरा, वेयणा परमदारुणा॥९॥ उवढ़िया मे आयरिया, विज्जामंतचिगिच्छगा। अबीआ सत्थकुसला( नानासत्थकुसला), मंतमूलविसारया ॥७२०॥ ते मे तिगिच्छं कुव्वंति, चाउम्पायं ॥ श्रीउत्तराध्ययनसूत्रं ॥]
५. सागरजी म. संशोधित
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