Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Author(s): Sudharmaswami, Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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जुत्तो, जलते (त) समिलाजुए। चोइओ तुत्तजुत्तेहिं, रुज्झो वा जह पाडिओ ॥ ६ ॥ हुआसणे जलतंमि, चिआसु महिसोविव। दद्धो पक्को य अवसो, पावकम्मेहिं पाविओ ॥७॥ बला संडासतुंडे हिं, लोहतुंडेहिं पक्खिहिं। विलुत्तो विलवंतोऽहं, ढंक गिद्धेहिंडणंतसो ॥८॥ तण्हाकिलंतो धावंतो, पत्तो वेयरणिं नई। जलं पाहंति चिंतंतो, खुरधाराहिं विवाइओ ॥९॥ उण्हाभितत्तो संपत्तो, असिपत्तं महावणं । असिपत्तेहिं पडतेहिं, छिन्नपुव्वो अणेगसो ॥६६० ॥ मुग्गरेहिं मुसुंढीहिं, सूलेहिं मुसलेहि य। गयासंभग्गगत्तेहिं, पत्तं दुक्खं अनंतसो ॥१॥ खुरेहिं तिक्खधाराहिं, छुरियाहिं कप्पणीहि यो कम्पिओ फालिओ छिन्नो, उक्कित्तो य अणेगसो ॥ २ ॥ पासेहिं कूडजालेहिं, मिओ वा अवसो अहं । वा (ग) हिओ बद्धरुद्धो य, विवसो चेव विवाइओ ॥ ३ ॥ गलेहिं मगरजालेहिं, वच्छोवा अवसो अहं । उल्लिओ फालिओ गहिओ, मारिओ य अनंतसो ॥४॥ विदंसएहिं जालेहिं, लिप्पाहिं सउणोविव। गहिओ लग्गो य बद्धो य, मारिओ य अनंतसो ॥५॥ कुहाडपरसुमाईहिं, वड्ढईहिं दुमोविव। कुट्टिओ फालिओ छिन्नो, तच्छिओ य अनंतसो ॥६॥ चवेडमुट्टिमाईहिं, कुमारेहिं अयंपिव। ताडिओ कुट्टिओ भिन्नो, चुण्णिओ य अनंतसो ॥७॥ तत्ताई तंबलोहाई, तउआई सीसगाणि यो पाइओ कलकलंताई, आरसंतो सुभेरवं ॥ ८ ॥ तुह प्पियाई मंसाई, खंडाई मुलगाणि या खाविओ मि समंसाई, अग्गिवण्णाई णेगसो ॥ ९ ॥ तुहं पिया सुरा सीहू, मेरओ य महूणि या पज्जिओ मि जयंतीओ, वसाओ रुहिराणि य॥६७० ॥ निच्चं भीएण तत्थेणं, दुहिएण वहिएण यो परमा दुहसंबद्धा, वेयणा वेइया भए ॥१॥ तिव्वचंडष्पगाढाओ, घोराओ अइदुस्सहा। महम्भयाओं (महालयाओ) भीमाओ, नरएसुं ॥ श्रीउत्तराध्ययनसूत्रं ॥
पू. सागरजी म. संशोधित
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