Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Author(s): Sudharmaswami, Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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तह दुक्करं करे जे, तारुण्णे समणतण॥९॥ जहा दुक्खं भरे जे, होइ वायस्स कुत्थलो। तहा दुक्खं करे जे, कीवेणं ||सभणतणं ॥६४०॥ जहा तुलाए तोलेड, दुक्करं मंदरो गिरी। तहा णिहुअणीसंकं, दुक्करं समणतणं॥१॥ जहा भुयाहिं तरिउ, दुक्कर रयणायरो तहा अणुवसंतेणं, दुक्करं दमसायरो॥२॥ भुंज माणुस्सए भोए, पंचलक्खणए तुमी भुत्तभोगी तओ जाया! पच्छ। धम चरिस्ससि॥३॥ सो (तो) बेअम्मापियरे, एवमेयं जहाफुडं। इहलोगे निप्पिवासस्स, नस्थि किंचिवि दुक्करं ॥४॥ सारीरमाणसा चेव, वेयणा 3 अणंतसो। मए सोढाओ(ई)भीमाओ(ई), असई दुक्खभयाणि य॥५॥ जरामरणकंतारे, चाउरते भयागरे। मया सोढाणि भीमाई, जम्माई मरणाणि य॥६॥ जहा इहं अगणी उण्हो, इत्तोऽणंतगुणो तहिं। नरएसु वेयणा उण्हा, अस्साया वेइया मए॥जहा इहं इमं सीयं, इत्तोऽणंतगुणं(णा) तहि नरएसु वेयणासीया, अस्साया वेड्या मए॥८॥कंदंतो कंदुकुंभीसु, उद्धपाओ अहोसिरो। हुयासणे जलंतंमि, पक्कपुचो अणंतसो॥९॥ महादवग्गिसंकासे, मरुमि वइरवालुए। कालंबवालुआए 3, दड्ढपुव्वी अणंतसो ॥६५०॥रसंतो कंदुकुंभीसु, उड्ढं बद्धो अबंधवो। करवत्तकरकयाईहिं, छिनपुवो अणंतसो॥१॥ अइतिक्खकंटगाइण्णे, ||तुंगे सिंबलिपायवे। खेवियं पासबद्धेणं, कड्ढोकड्ढाहिं दुक्करं ॥२॥ महाजतेसु उच्छूवा, आरसंतो सुभेरवी पीलिओ मि सम्मेहि, पावकम्मो अणंतसो॥३॥ कूवंतो कोलसुणएहिं, सामेहिं सबलेहि यो पाडिओ फालिओ छिनो, विप्फुरंतो अणेगसो॥४॥ असी( अरसा )हिं अयसिवण्णेहिं, भल्लीहिं पट्टिसेहि यो छिनो भित्रो विभित्रो य, उववत्रो( उइण्णो) पावक-मुणा॥५॥अवसो लोहरहे ॥ श्रीउत्तराध्ययनसूत्रं ॥
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पू. सागरजी म. संशोधित
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