Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Author(s): Sudharmaswami, Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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सव्वपाणिणी गाढा य विवाग कम्मुणो, समयं०॥३॥ पुढवीकायमइगओ, उक्कोसं जीवो य संवसे। कालं संखातीयं, समयं०॥४॥l आउकायम०॥५॥ तेउवाय०॥६॥ वाउचाय०॥७॥ वणस्सइकाय० कालमणंतदुरंतं, समयं०॥८॥ बेइंदियकायक कालं संखिज्जसणियं, समयं०॥९॥ तेइंदिय०॥३००॥ चरिदिय०॥१॥ पंचिंदियकायमइगओ। सत्तभवग्गहणे, समयं०॥२॥ देवे णेरइए य अइगओ०। एक्केक्कभवग्गहणे, समयं०॥३॥ एवं भवसंसारे संसरति सुभासुभेहिं कम्मेहि। जीवो पमायबहुलो, समयंका॥ लक्ष्णऽवि माणुसत्तणं, आरियतणं पुणरावि दुल्लभी बहवे दसुया मिलक्खुया, समय० ॥५॥ लक्षूणऽवि आरियतणं, अहीणपंचिंदियया हु दुल्लहा। विगलिंदियता हु दीसइ, समयं०॥६॥ अहीणपंचिंदियत्तंपि से लहे, उत्तमधम्मसुती हु दुल्लहा। |मिच्छत्तनिसेवए जणे, समयं०॥७॥ लधूणवि उत्तमं सुई, सद्दहणा पुणरावि दुलहा। मिच्छत्त०, समयं०॥८॥ धमपि हु सद्दहत्या,
दुल्लभया काएण फासया। इह कामगुणेहिं मुच्छिया, समयं०॥९॥ परिजूरइ ते सरीरयं, केसा पंडुरगा (य) भवंति तसे सोयबले ||य हायइ, समयं ॥३१०॥ परि० चक्खुबले० ॥१॥ परि० । घाणबले० ॥२॥ परि० जिब्म( रसण )बले० ॥३॥० फासबले०
॥४॥० सव्वबले० ॥५॥ अरई गंडं विसूइया, आयंका विविहा फुसंति ते विहडइ विद्धंसइ ते सरीरयं, समयं० ॥६॥ वुच्छिंद सिणेहमप्पणो, कुमुयं सारइयं व पाणियोसे सव्वसिणेहवज्जिए, समयं०॥७॥चिच्चाण धणं च भारियं, पव्वइओ हि सि अणगारियो मा वंतं पुणोवि आविए, समय० ॥८॥ अवउझिय मित्तबंधवं, विउलं चेव धणोहसंचयो मा त बिइयं गवेसए, समयं० ॥९॥ श्रीउत्तराध्ययनसूत्रं ॥
पू. सागरजी म. संशोधित
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