Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Author(s): Sudharmaswami, Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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||मुणी विगयसंगामो, भवाओ परिमुच्चति॥९॥एय०॥२५०॥ पासाए काइना, वड्ढमाणगिहाणि यो वालग्गपोइयाओ 2,|| तओ०॥१॥ एय०॥२॥ संसयं खलु सो कुणइ, जो मग्गे कुणई घर जत्थेव गंतुमिच्छेज्जा, तत्थ कुव्विज्ज सासयं ॥३॥ एय०॥४॥ आमोसे लोमहारे य, गंठिभेए य तक्करे। णगरस्स खेमं काऊणं, ततो० ॥५॥ एय० ॥६॥ असई तु मणुस्सेहिं मिच्छादंडो पउंजड़। अकारिणोऽत्य बझंति, मुच्चई कारओ जणो॥७॥ एय०८॥ जे केइ पत्थिवा तुब्ध, नानमंति नराहिवा!। वसे ते ठावइत्ताणं, तओ०॥९॥ एय० ॥२६०॥ जो सहस्सं सहस्साणं, संगामे दुजए जिणे एगं जिणेज अप्पाणं, एस से परमो जओ॥१॥अप्पाणमेव जुल्झाहि, किं ते जुझेण बल्झओ? अप्पणामेव अप्पाणं, जिणित्ता सुहमेहति ॥२॥ पंचिंदियाणि कोहं माणं मायं तहेव लोहं चो दुजयं चेव अप्पाणं, सव्वमप्पे जिए जित॥३॥ एय०॥४॥ जइत्ता विउले जन्ने, भोइत्ता समणमाहणे। दच्चा जच्चा य भोच्चा य, ततो०॥५॥ एयं०॥६॥ जो सहस्सं सहस्साणं, मासे मासे गवं दए। तस्सावि संजमो सेओ, अदितस्सवि किंचण॥७॥ एय०॥८॥ घोरासमं चइत्ताणं, अन्नं पित्थेसि आसमीइहेव पोसहरओ, भवाहि मणुयाहिवा!॥९॥एय०॥२७०॥ मासे मासे 3 जो बालो, कुसग्गेणं तु भुंजइ। न सो सुक्खा( यक्खा यधम्मस्स, कलं अग्घइ सोलसिं॥१॥ एय०॥२॥ हिरण्णं सुवणं मणिमोत्तं, कंसं दूसंच/ वाहणं (सवाहणं)। कोसंच वड्ढइत्ताणं, तओ०॥३॥एय० ॥४॥सुवण्णरूप्पस्स य पव्वया भवे, सिया हु केलाससमा असंखया || नरस्स लुद्धस्स न तेहिं किंचि, इच्छा हु आगाससमा अणंतया ॥५॥ पुढवी साली जवा चेव, हिरण्णं पसुभिस्सहपडिपुन नालमेगस्स, In श्रीउत्तराध्ययनसूत्र ॥
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पू. सागरजी म. संशोधित
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