Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Author(s): Sudharmaswami, Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 29
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir जेहिं इमो साहधम्मो पन्नत्तो॥५॥ पाणे य नाइवाइज्जा, से समियत्ति वुचई ताई। तओ से पावयं कम्म, निजाइणिण्णाइ) उदगंव|| थलाओ॥६॥ जगनिस्सिएहिं भूएहिं, तसनामेहिं थावरेहिं च (जगनिस्सियाणं भूयाणं, तसाणं थावराण य)। नो तेसिमारभे दंड, मणसावयसाकायसा चेव॥७॥ सुद्धेसणा ३ णच्चाणं, तत्य ठवेज्ज भिक्खू अप्पाणी जाताए घासमेसिज्जा, रसगिद्धे न सिया भिक्खाए॥८॥ पंताणि चेव सेविज्जा, सीयपिंडं पुराणकुम्मासी अदु बुक्कसं पुलागं वा, जवणढाए निसेवा हव)ए मंथु॥९॥ जे लक्खणं च सुविणं च, अंगविजं च जे पउंति। न हु ते समणा वुच्चंति, एवं आयरिएहिं अक्खाय॥२२०॥ इह जीवियं अनियमित्ता, पब्भट्ठा समाहिजोगेहि। ते कामभोगरसगिद्धा, उववन्जंति आसुरे काए॥१॥ तत्तोऽविय उवट्टित्ता, संसारं बहु (अणु परियडंति। बहुकम्मलेवलित्ताणं, बोही होइ(जत्य) सुदुल्लहा तेसिं॥२॥ कसिणंपि जो इमं लोयं, पडिपुन दलेन्ज एगस्स|| तेणावि से ण संतुस्से तुसेज्जा), इइ दुप्पूरए इमे आया॥३॥ जहा लाभो नहा लोभो, लामा लोभो पवड्ढतिदोमासकयं कज्ज, कोडीएविन निद्विय॥४॥ नो रक्खसीसु गिझेज्जा, गंडवच्छासु णेगचित्तासुजाओ पुरिसं पलोभित्ता, खेल्लंति जहा व दासेहिं ॥५॥ नारीसु नो पगिज्झिज्जा, इत्थीविप्पजहे अणगारे।धमंच पेसलं णच्चा, तत्थ ठवेज्न भिक्खु अप्पाण॥६॥ इइ एस धम्मे अक्खाए, कविलेणं च विसुद्धपण्णेणी तरिहिंति जे 3 काहिंति, तेहिं आराहियां दुवे लोगु॥२२७॥ त्ति बेमि, काविलिजज्झयणं। चइऊण देवलोगाओ उववन्नो माणुसंमि लोगमि। उवसंतमोहणिज्जो सरती पोराणियं जाई॥८॥ जाइं सरित्तु भयवं सहसंबुद्धो ॥ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र ॥ पू. सागरजी म. संशोषित For Private And Personal

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