Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Author(s): Sudharmaswami, Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 28
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir सुच्चा( पत्तो) नेयाज्यं मग्गं, जं भुजो परिभस्सति॥२॥ इह कामा नियहस्स, अत्तढे नावरझति। पूतिदेहनिरोहेणं भवे देवेत्ति मे|| सुय॥३॥ इड्ढी जुती जसो वन्नो, आउँ सुहमणुत्तरे। भुजो जत्थ मणुस्सेसुं, तत्थ से उववज्जति॥४॥ बालस्स पस्स बालतं, अहम्म पडिवजिआणिोचिच्चा धम्म अहमिटे, नरएसूववजइ ५॥धीरस्स पस्स धीरत्नं, सव्वधम्माणुवत्तिणो। चिच्चा अधम्म धमिटे, देवेसु उववजइ ६ ॥ तुलिआण बालभावं, अबालं चेव पंडिए। चइऊण बालभावं, अबालं सेवए मुणी॥२०७॥ ति बेमि, एलइजऽज्झयणं॥७॥ ___ अधुवे असासयंमि (अधुवंमि मोहगहणए), संसारंमि दुक्खपउराए। किं नाम होज तं कम्मयं?, जेणाहं दुग्गइं न गच्छेज्जा/ (ईतो मुच्चेजा) ॥ विजहित्तु पुव्वसंजोगं, न सिणेहं कहिंचि कुब्बिज्जा। असिणेह सिणेहकरेहिं, दोसपउसे(ए)हिं मुच्चई| भिक्खू॥९॥ तो नाणदंसणसमग्गो, हियनिस्सेसाए र सव्वजीवाणी तेसिं विमोक्खणढाए भासइ मुणिवरो विगयमोहो॥२१०॥ सव्वं गंथं कलहं च, विप्पजहे तहाविहं (हो) भिक्खू। सव्वेसु कामजाएसु, पासमाणो न लिप्पई ताई॥१॥ भोगामिसदोसविसत्रे, हियनिस्सेयसबुद्धिवोच्चत्थे। बाले य मंदए मूढे, बझए मच्छियाव खेलमि॥२॥ दुष्परिच्च्या इमे कामा, नो सुजहा अधीरपुरिसेहि। अह संति सुव्वया साहू, जे तरंति अतरं वणियावा वणियाव समुदं)॥३॥ समणा मु एगे वदभाणा, पाणवहं मिया अजाणंता। |मंदा निरयं गच्छंति, बाला पावियाहिं दिट्ठीहिं ॥४॥न हु पाणवहं अणुजाणे, मुच्चेन्ज कयाइ सव्वदुक्खाणी एवमारिएहिमक्खायं, ॥ श्रीउत्तराध्ययनसूत्रं ॥ [ १८ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal

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