Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Author(s): Sudharmaswami, Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
View full book text ________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsur Gyanmandir
||san इमे य बद्धा फंदंति, मम हत्थऽज्जमागया। वयं च सत्ता कामेसु, भविस्सामो जहा इमे॥५॥ सामिसं कुललं दिस्सा, बझमाणं निरामिसी आमिसं सव्वमुल्झित्ता, विहरिस्सामो निरामिसा॥६॥ गिद्धोवमे र नच्चाणं, कामे संसारवड्ढणे। उगो |सुवण्णपासिव्व, संकमाणो तणुं चरे॥७॥ नागुव्व बंधणं छित्ता, अप्पणो वसहिं वए। एयं पत्थं ( इति एत्थं) महारायं!, सुआरित्ति मे सुय॥८॥ चइत्ता विपुलं रज्जं, कामभोगे अ दुच्चए। निव्विसया निरामिसा, निनेहा निप्परिग्गहा॥९॥ सम्मं धम्म वियाणित्ता, चिच्चा कामगुणे चोतवं पगिऽहक्खायं, घोरं घोरपरक्कमा॥४९०॥एवं ते कमसो बुद्धा, सव्वे धम्मपरायणा जम्ममन्चमाव्विग्गा, ||दुक्खस्संतगवेसिणो॥१॥ सासणि विगयमोहाणं, पुव्विं भावणमाविया। अचिरेणेव कालेणं, दुक्खस्संतमुवागया॥२॥ राया सह देवीए, माहणो 3 पुरोहिओ। माहणी दारगा चेव, सव्वे ते परिनिव्वुडि ॥४९३॥त्ति बेमि, उसुयारिजल्झयणं१४॥
मोणं चरिस्सामि समिच्च धम्म, सहिए उज्जुकडे नियाणछिन। संथवं जहिज्ज अकामकामे, अन्नायएसी परिवए जेस भिक्खू॥राओवरयं चरिज लाडे, विरए वेदवियाऽऽयरखिए।पने अभिभूय सव्वदंसी, जे कम्हिविन मुच्छिए स भिखा५॥ अक्कोसवहं विदित्तु धीरे, मुणी चरे लाढे निच्चमायगुत्ते। अव्वग्गमणे असंपहिडे, जो कसिणं अहिआसए स भिक्खू॥६॥ पंत सयणासणं भइत्ता, सीउण्हं विविहं च दंसमसगी अव्वग्गमणे असंपहिढे, जो कसिणं अहिआसए स भिक्खू७॥ नो सक्कियमिच्चई म पूअं, नोविय वंदणगं कुओ पसंसं? से संजए सुव्वए तवस्सी, सहिए आयगवेसए स भिक्ख ॥८॥ जेण पुणो जहाइ जीवियं, In श्रीउत्तराध्ययनसूत्रं ॥
पू. सागरजी म. संशोपित
For Private And Personal
Loading... Page Navigation 1 ... 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126