Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Author(s): Sudharmaswami, Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 52
________________ Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir गाणंगणिए दुब्भूए, पावसमणित्ति वुच्चई ॥ ३ ॥ सयं गेहं परिच्चज, परगेहंसि वावरे (ववहरे)। निमित्तेण य ववहरई, पावसमणित्ति वुच्चई ॥४॥ संनाइपिंडं जेमेइ, निच्छई सामुदाणियं । गिहिनिसिज्जं च वाहेइ, पावसमणित्ति वुच्चई ॥ ५ ॥ एयारिसे पंच कुसीलसंवुडे, रूवंधरे मुणिपवराण हिडिमे । अयंसि लोए विसमे व गरहिए, न से इहं नेव परत्थलोए ॥ ६ ॥ जे वज्ज एए उ सदा उ दोसे, से सुव्वए होइ भुणीण मज्झे । अयंसि लोए अमयं व पूइए, आराहए दुहओ लोगमिणं ॥ ५४७ ॥ ति बेमि, पावसमणिज्ज्ज्ज्झयणं १७॥ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कंपिल्ले नयरे राया, उदित्रबलवाहणे । नामेणं संजओ नाम, मिगव्वं उवनिग्गए ॥८ ॥ हयाणीए गयाणीए, रहाणीए तहेव या पायत्ताणीए महया, सव्वओ परिवारिए ॥९॥ भिए छुभित्ता हयगओ, कंपिल्लुज्जाणकेसरे । भीए संते मिए तत्थ, व्हेइ रसमुच्छिए ॥५५० ॥ अह केसरंमि उज्जाणे, अणगारे तवोधणे । सज्झायझाणजुत्तो, धम्मज्झाणं झियायइ ॥१॥ अप्फोवमंडवंमी, झायई झवियासवे । तस्सागए भिए पासं, व्हेइ से नराहिवे ॥ २ ॥ अह आसगओ राया, खिष्पमागम्म सो तहिं । हए मिए उपासित्ता, अणगारं तत्थ पासई ॥ ३ ॥ अह राया तत्थ संभंतो, अणगारो मणाऽऽहओ। मए उ मंदपुण्णेणं, रसगिद्धेण घंतुणा ॥४॥ आसं विसज्जइत्ताणं, अणगारस्स सो निवो। विणएणं वंदई पाए, भगवं ! इत्थ मे खमे ॥ ५ ॥ अह मोणेण सो भगवं, अणगारो झाणमस्सिओ। रायाणं न पडिमंतेइ तओ राया भयदुओ ॥६॥ संजओ अहमस्सीति, भगवं! वाहराहि मे । कुद्धे तेएण अणगारे, दहिज्जा नरकोडिओ ॥७॥ अभओ पत्थिवा! तुझं, अभयदाया भवाहि या अणिच्चे जीवलोगंमि, किं हिंसाए पसज्जसि ? ॥८॥ जया (हा )सव्वं परिच्चज, ॥ श्रीउत्तराध्ययनसूत्रं ॥ ४२ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal

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