Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Author(s): Sudharmaswami, Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 50
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org मणपल्हायजणणी, कामरागविवड्डणी। बंभचेररंओ भिक्खू, थीकहं तु विवज्जए ॥१॥ समं च संथवं थीहिं, संकहं च अभिक्खणं । बंभचेररओ भिक्खू, निच्चसो परिवज्जए ॥ २ ॥ अंगपच्चंगसंठाणं, चारुल्लवियपेहियं । बंभचेररओ थोणं, सोअगिज्झं विवज्जए ॥ ३ ॥ कुइयं रुइअं ग्रीयं, हसियं थणियं कंदियं । बंभनेररओ थीणं, सोअगिज्झं विवज्जए ॥४॥ हासं खिड्ड रखं दध्यं, सहसावतासियाणि यो बंभचेररओ थोणं, नाणुचिंते कयाइवि ॥५॥ पणीयं भत्तपाणं च खिष्यं मयविवड्ढणंी बंभचेररओ भिक्खू, निच्चसो परिवज्जए ॥६॥ धम्मलद्धं (म्मं लधुं ) मियं काले, जत्तत्थ पणिहाणवं । णाइमत्तं तु भुंजिज्जा, बंभबेररओ सया॥७॥ विभूसं परिवज्जिज्जा, सरीरपरिमंडणी बंभचेररओ भिक्खू, सिंगारत्थं न धार ॥८ ॥ सद्दे रूवे य गंधे य, रसे फासे तहेव या पंचविहे कामगुणे, निच्चसो परिवज्जए ॥९॥ आलओ थीजणाइन्नो, थीकहा य मणोरमा। संथवो चेव नारीणं, तासिं इंदियदरिसणं ॥ ५२० ॥ कुइयं रुइयं. गीयं, हसियं भुत्तासियाणि या पणीयं भत्तपाणं च, अइमायं पाणभोयणं ॥१॥ गत्तभूसणमि च कामभोगा य दुज्जया । नरस्सऽत्तवगेसिस्सा, विसं तालउडं जहा ॥२॥ दुज्जए कामभोगे य, निच्चसो परिवज्जए । संकठाणाणि सव्वाणि, वज्जिज्जा पणिहाणवं ॥ ३ ॥ धम्मारामे चरे भिक्खू, धिईमं धम्मासारही । धम्मारामरए दंते, बंभचेरसमाहिए ॥४॥ देवदाणवगंधव्वा, जक्खरक्खसकिन्न ।। बंभयारिं नमसंति, दुक्करं जे करंति तं (ते ) ॥५॥ एस धम्मे धुवे नियए, सासए - जिणदेसिए। सिद्धा सिज्झति चाणेणं, सिन्झिस्संति तहावरे ॥ ५२६ ॥ त्ति बेंमि, बंभचेरसमाहिठाणऽज्झयणं १६ ॥ ॥ श्रीउत्तराध्ययनसूत्रं ॥ ४० Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir For Private And Personal पू. सागरजी म. संशोधित

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