Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Author(s): Sudharmaswami, Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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साहीणमिहेव तुझ६॥ धणेण किं धमधुराहिगारे?, सयणेण वा कामगुणेहिं चेवा समणा भविस्सामु गुणोहधारी, बहिविहारा|| अभिगम्म भिक्ख ॥७॥ जहा य अग्गी अरणीउऽसंतो, खीर घयं तिल्लमहा तिलेसु। एमेव जाया सरीरंमि सत्ता, संमुच्छई नासह नावचितु॥८॥नो इंदियग्गिझुअमुत्तभावा, अमुत्तभावा चिय होइ निच्चो।अझत्थहे निययऽसबंधो, संसारहेउंच वयंति बंधार जहा वयं धम्ममजाणमाणा, पावं पुरा कम्ममकासि मोहा। ओरुज्झमाणा परिरक्खयंता, तं णेव भुजोऽवि समायरामो॥४६०॥ अब्भाहयंमि लोगंमि, सव्वओ परिवारिए।अमोहाहिं पड़तीहिं, गिर्हसि नरई लभे॥१॥केण अब्भाहओ लोओ, केण वा परिवारिओ? का वा अमोहा वुत्ता?, जाया! चिंतावरो हुमि॥२॥ मच्चुणाऽब्भाहलो लोओ, जराए परिवारिओ। अमोहा रयणी वुत्ता, एवं ताय! वियाणह ॥३॥ जा जा वच्चइ रयणी, 7 सा.पडिनियत्तई अहम कुणमाणस्स, अहला जति राइओ॥४॥ जा जा वच्चइ रयणी, न सा पडिनियत्तई। धम्मं तु कुणमाणस्स, सफला जति राइओ॥५॥ एगओ संवसित्ताणं, दुहओ सम्मत्तसंजुया। पच्छ। जाया गमिस्सामो, भिक्खमाणा कुले कुले॥६॥ जस्सऽत्यि मच्चुणा सक्खं, जस्स वऽस्थि पलायणी जो जाणइ न मरिस्सामि, सो हु कंखे सुए सिया॥७॥ अज्जेव धम्म पडिवजयामो, जहिं पवना न पुणब्भवामो। अणांगयं नेव य अस्थि किंची, सद्धा खमं नो विणइत्तु रागा॥ पहीणपुत्तस्स हु नत्यि वासो, वासिद्धि! भिक्खायरियाइ कालो। साहाहिं रुक्खो लहई समाहि, छिनाहिं साहाहिं तमेव खाणुं॥९॥ पंखाविहूणा व जहेव पक्खी, भिच्चव्विहूणो व रणे नरिंदो। विवनसारो वणिउव्व पोए, पहीणपुत्तो मि तहा || श्रीउत्तराध्ययनसूत्र ॥
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पू. सागरजी म. संशोधित
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