Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Author(s): Sudharmaswami, Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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ज मे तुम साहसि वक्कमेयो भोगा इमे संगकरा भवंति, जे दुजया अजो! अम्हारिसेहि॥२॥ हत्यिणपुरंमि चित्ता! दतॄणं नरवई महिड्ढीयो कामभोगेसु गिद्धेणं, नियाणमसुभं कडं ॥३॥ तस्स मे अप्पडिकंतस्स, इमं एयारिसं फली जाणमाणोऽवि जं धम्म, कामभोगेसु मुच्छिओ॥४॥ नागो जहा पंकजलावसनो, दटुं थलं नाभिसमेइ तीरी एवं वयं कामगुणेसु गिद्धा, न भिक्खुणो मग्गमणुव्वयामो॥५॥ अच्चेइ कालो तूरंति राइओ, न यावि बोगा पुरिसाण निच्चा अविच्च भोगा पुरिसंचयंति, दुमं जहा खीणफलं व पक्खी ॥६॥ जईजत सि भोगे चहउं असत्तो, अजाई कम्माई करेहि रायं। धम्मे ठिओ सव्वपयाणुकंपी, तं होहिसि देवो इओ विउव्वी॥७॥ न तुझ भोगे चइऊण बुद्धी, गिद्धो सि आरंभपरिग्गहेंसु। मोहं कओ इति विप्पलावो, गच्छामि रायं! आमंतिओऽसि॥४॥ पंचालरायाऽविय बंभदत्तो, साहुस्स नस्स वयणं अकाउंी अणुत्तरे भुंजिय कामभोगे, अणुत्तरे सो नए पविट्ठो॥९॥ चित्तोऽवि कामेहिं विरत्तकामो, उदनचारित्ततवो महेसी अणुत्तरं संजय पालइत्ता, अणुत्तरं सिद्धिगई गओnesoul ति बेमि, चित्तसंभूइज्जज्झयणं१३॥
देवा भवित्ताण पुरे भवंमी, केई चुया एगविमाणवासी। पुरे पुराणे इसुयारनामे खाए समिद्धे सुरलोगरम्म॥१॥ सकम्मसेसेण पुराकएणं, कुलेसु उग्गे (सुदत्ते ) सु य ते पसूनिविण्णसंसारभया जहाय, जिणिंदमग्गं सरणं पवना॥२॥ पुमनमागम कुमार दोऽवि, पुरोहिओ तस्स जसा य पत्ती विसालकिती य तहेसुआरो, रायऽत्थ देवी कमलावई य॥३॥ गाईजामच्चुभयाभिषणा ॥ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र ।।
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