Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Author(s): Sudharmaswami, Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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अस्थि पभूयमन्नं, तं भुंजसू अह अणुग्गहठ्ठा। बादति पडिच्छइ भत्तपाणं, मासस्स ऊ पारणए महप्या॥३॥ तहियं गंधोदयपुष्फवासं,|| दिव्वा तहिं वसुहारा य वुढापहया दुंदुहीओ सुरेहिं, आगासे अहोदाणं च धुटुं॥४॥सक्खं खुदीसइ तवोविसेसो, न दीसई जाइविसेस कोई। सोवागपुत्तं हरिएससाहं, जस्सेरिसा इड्ढि महाणुभागा॥५॥ किं माहणा! जोइ समारभंता, उदएण सोहिं बहिया विभग्गहा? जं मग्गहा बाहिरियं विसोहिं, न तं सुदिटुं कुसला वयंति॥६॥ कुसं च जूवं तणकट्ठमग्गि, सायं च पायं उदयं फुसंता। पाणाई भूयाई विहेडयंता, भुजोऽवि मंदा! परेह पाव॥७॥ कह रे भिक्खु! वयं जयामो?, पावाई कम्माई पणुल्लयामो। अक्खाहि णे संजय जखपूइआ, कहं सुजटुं कुसला वयंति?॥८॥ छज्जीवकाए असमारभंता, मोसं अदत्तं च असेवमाणा। परिग्गहं इत्थि माणमायं, एयं परित्राय चरंति दंता॥९॥ सुसंवुडा पंचहि संवरेहिं, इह जीवियं अणवकंखमाणो। वोसहकाओ सुइचत्तदेहो, महाजयं जयई जनसिटुं॥४००॥ के ते जोई के व ते जोइठाणा?, का ते सूया किं च ते कारिसंग?। एहा य ते कयरा संति भिक्खू!, करेण होमेण हुणासि जोइं?॥१॥ तवो जोई जीवो जोइठाणं, जोगा सुया सरीरं कारिसंगो कम्म एहा संजमजोग संती, होम हुणामी इसिणं पसत्थं ॥२॥ के ने हरए के य ते संतितित्थे?, कहंसि हाओ व रयं जहासि? आयख णे संजय जखपूइया!, इच्छामु नाउँ भवओ सगासे॥३॥ धमे हरए बंभे संतितित्थे, अणाविले अत्तपसनलेसे। जहिंसि हाओ विमलो विसुद्धो, सुसीइभूओ( सुसीलभूओ पजहामि दोस॥४॥ एयं सिणाणं कुसलेण दिg, महासिणाणं इसिणं पसत्यो जहिंसि व्हाया विमला || श्रीउत्तराध्ययनसूत्रं ॥
पू. सागरजी म. संशोधित
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