Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Author(s): Sudharmaswami, Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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भिक्खू मणमा पस्से ॥५॥ मंदा य फासा बहुलोभणिज्जा, तहप्पगारेसु मणं ण कुजा। रक्खेज कोहं विणएज माणं, मायं ण|| सेवेज पहिज्ज लोह ॥६॥ जे संख्या तुच्छपरप्पवादी, ते पेजदोसाणुगया परझा। एए अहम्मुत्ति दुगुंछमाणो, कंखे गुणे जाव सरीरभेए॥१२७॥ ति बेमि, असंखिजज्झयणी४॥ ____ अण्णवंसि महोहंसि, एगे तरइ दुरुत्ती तत्थ एगे महापण्णे, इमं पण्हमुदाहरे॥८॥ संतिमेय( ए दुवे ठाणा, अक्खाया मारणंतिया। अकाममरणं चेव, सकाममरणं तहा॥९॥ बालाणं अकामं तु, मरणं असतिं भवे। पंडियाणं सकामं तु, उक्कोसेण सतिं भवे॥१३०॥ तस्थिमं पढम् ठाणं, महावरिण देसियो कामगिद्धे जहा बाले, भिसं कूराणि कुव्वति॥१॥ जे गिद्धे कामभोगेसु, एगे कूडाय गच्छहोने मे दिढे परे लोए, चक्खुदिहा इमा रती॥२॥ हत्यागया इमे कामा, कालिया जे अणागया। को जाणा परे लोए, अस्थि वा नत्यि वा पुणो?॥३॥ जणेण सद्धि होक्खामि, इति बाले पगमको कामभोगाणुरागेणं, केसं संपडिवजइ॥४॥ तओ (तउसे) दंडं समारभति, तसेसुं थावरेसु यो अढाए । अणढाए, भूयगामं विहिंस३॥५॥ हिंसे बाले मुसावाई, माइले पिसुणे सढे. भुंजमाणे सुरं मंस, सेयमेयंति मन्नइ ॥६॥ कायसा वयसा मते, वित्ने गिद्धे य इत्थिसु। दुहओ मलं संचिणइ, सिसुनागुव्व मट्टिय॥७॥ तओ पुट्ठो आर्यकेण, गिलाणो परितप्पति। पभीओ परलोगस्स, कम्माणुप्पेही अप्पणो॥४॥ सुया मे णरए ठाणा, असीलाणं च जा गती। बालाणं कूरकमाणं, पगाढा जत्थ वेयणा॥॥ तत्थोववाइयं ठाणं, जहा मे तमणुस्सुयी आहाकम्मेहिं ॥ श्रीउत्तराध्ययनसूत्रं ॥
पू. सागरजी म. संशोधित
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