Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Author(s): Sudharmaswami, Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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तुलिया विसेसमायाय, दयाधम्मस्स खंतिए । विप्पसीइज मेधावी, तहाभूएण अप्पणा ॥७॥ तओ काले अभिप्पेए, सड्ढी तालिसमंतिए । विणएज लोमहरिसं, भेयं देहस्स कंखए ॥८ ॥ अह कालंमि संपत्ते, आघायाय समुच्छ्यं । सकाममरणं मरति, तिण्हमन्त्रयरं मुणी ॥ १५९ ॥ त्ति बेमि, अकाममरणिज ऽज्झयणं५ ॥
जावंतऽविज्जा पुरिसा, सव्वे ते दुक्खसंभवा(ते सव्वे दुक्खमज्जिया)। लुप्यंति बहुसो मूढा, संसारंमि अनंत ॥ १६० ॥ समिक्ख पंडिए तम्हा (तुम्हा समिक्ख मेहावी), पास जाइपहे बहू । अप्पणा (अत्तट्ठा) सच्चमेसेज्जा, मित्तिं भूएहिं कप्पए ॥१॥ माया पिया ण्डुसा भाया, भज्जा पुत्ता य ओरसा। नालं ते मम ताणाय, लुभ्यंतस्स सकम्मुणा ॥ २ ॥ एयमहं सपेहाए, पासे समियदंसणे । चिंध गेहिं सणिहं च, ण कंखे पुव्वसंथवं ॥३॥ गवासं मणिकुंडलं, पसवो दासपोरुसं । सव्वमेयं चइत्ताणं, कामरूवी भविस्ससि ॥४॥ थावरं जंगमं चेव, धणं धण्णं उवक्खरं । पच्चमाणस्स कम्मेहिं, नालं दुक्खाउ मोयणे ॥५॥ अब्भत्तं सव्वओ सव्वं, दिस्स पाणें पिया( उ )ए। न हणे पाणिणो पाणं, भयवेराओ उवरए ॥६॥ आयाणं नरयं दिस्स, नायइज्ज तणामवि। दोगुंछी अप्पणो पाते, दिन्नं भुंजेज्ज भोयणं ॥७॥ इहमेगे उ मन्नंति, अप्पच्चक्खाय पावगं । आय (याss )रियं विदित्ताणं, सव्वदुक्खा विमुच्च ॥८॥ भणंता अकरिंता य बंधमोक्खपइण्णिणो । वायाविरियमेत्तेणं, समासासेति अप्पगं ॥९॥ न चित्ता तायए भासा, कओ विज्जाणुसासणं? । विसण्णा पावकम्मे (किच्चे )हिं, बाला पंडियमाणिणो ॥ १७० ॥ जे केइ सरीरे सत्ता, वण्णे रूवे य सव्वसो । ॥ श्रीउत्तराध्ययनसूत्रं ॥ पू. सागरजी म. संशोधित
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