Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Author(s): Sudharmaswami, Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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एवमादाय मेहावी, पंकभूयाउ इथिओ (जहा एया लहुस्सगं)। न ताहिं विणिहण्णिजा, चरे अत्तगवेसए॥५॥ एग एव'चरे लाढे, अभिभूय परीसहे। गामे वा नगरे वावि, णिगमे वा रायहाणिए॥६॥असमाणो चरे भिक्खू, नेव कुज्जा परिग्गही असंसत्तो गिहत्थेहि, अनिकेओ परिव्वए।७॥सुसाणे सुन्नगारे वा, रुक्खमूले यएगओ।अकुक्कुए निसीएजा, न य वित्तासए परं॥८॥तत्थ से चिट्ठमाणस्स वसग्गेऽभिधारए (उवसग्गभयं भवे)। संकाभीओ न गच्छेज्जा, उद्वित्ता अण्णमासणं॥९॥ उच्चावयाहि सिजाहिं, तवस्सी भिक्खु थामवी णाइवेलं विहणिज्जा, पावदिट्ठी विहण्णइ॥७०॥ पइरिक्कुवस्सयं लद्ध, कल्लाणं अदुव पावगी किमेगरायं करिस्सइ?, एवं तत्थऽहियासए॥१॥ अक्कोसेज परो भिक्खू, न तेसिं पड़ संजले सरिसो होइ बालाणं, तम्हा भिक्खू न संजले॥२॥ सोच्चाणं फरुसा भासा, दारुणे गामकंटए। तुसिणीओ उवेक्खिजा, ण ताओ मणसीकरे॥३॥ हओ ण संजले भिक्खू, मणंपिणो परस्सए। तितिक्खं परमं णच्चा, भिक्खुधभ्ममि चिंतए॥४॥ समणं संजयं दंतं, हणिजा कोऽवि कथवि। नस्थि जीवस्स नासुति, न य पेहे असाधुयं (एवं पेहिग्ज संजतो)॥५॥ दुकरं खलु भो! णिच्चं, अणगारस्स भिक्खुणो। सव्वं से जाइयं होइ, नस्थि किंचि अजाइयोः ॥ गोयग्गपविटुस्स, हत्थे नो सुप्पसारए। सेओ अगारवासोति, इइ भिक्खू न चिंतए॥७॥ परेसु गासमेसिज्जा, भोयणे परिणिहिएलद्धे पिंडे आहारिजा, अलद्धे नाणुतप्पए( नाणुतप्पिज पंडिए)॥८॥ अजेवाहं ण लब्भामि, अवि लाभो सुए सिया
जो एवं पडिसंचिक्खे, अलाभो तं न तजए॥९॥णच्चा उप्पइयं दुक्खं, वेदणाए दुहहिहिए। अदीणो ठावए पण्णं, पुढो In श्रीउत्तराध्ययनसूत्र ।।
पू. सागरजी म. संशोधित
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