Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Author(s): Sudharmaswami, Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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निप्टेि फासु वा घुसुलणे असंसत्तं । कत्तणि असंखचुन चुनं वा जा अचोक्खलिणी ॥२॥ उवदृणि संसत्तेण वावि अट्ठीलए|| न घटे । पिंजाणपमहणेसु य पच्छाकम्मं जहा( हिं) नयि ॥३॥ सेसेसु य पडिवक्खो न संभवइ कायगहणमाईसुपडिवक्खस्स |अभावे नियमा उ भवे तयग्गहणं ॥४॥ सच्चित्ते अच्चित्ते मीसग उम्मीसगंमि चउभंगो आइतिए पडिसेहो चरिम भंगमि भयणा
५॥ जह चेव य संजोगा कायाणं हे?ओ य साहरणे । तह चेव य उम्मीसे होइ विसेसो इमो तत्थ १६॥ दायव्वमदायव्वं च दोऽवि दव्वाई देइ मीसे । ओयणकुसुणाईणं साहरण तयन्नहिं छोड़े ॥७॥ तंपिय सुक्के सुर भंगा चत्तारि जह 3 साहरणे अप्पबहुएऽवि चउरो तहेव आइन्नऽणाइन्ने ॥८॥ अपरिणयंपिय दुविहं दव्ये भावे य दुविहमेशवं । दव्यंमि होइ छक्कं भावंमि य होइ सझिलगा ॥१॥ जीवत्तमि अविगए अपरिणयं परिणयं गए जीवे । दिढतो दुद्धदही इय अपरिणयं परिणयं तं च ॥१०॥ दुगमाई सामन्ने.जइ परिणमई उ तत्थ एगस्स देमित्ति न सेसाणं अपरिणयं भावओ एयं ॥१॥एगेण वावि एसिं मणमि परिणामियं नइयरेणं । तंपि हु होइ अगिझं सझिलगा सामि साहू वा ॥२॥घेत्तव्यमलेवकडं लेवकडे मा हु पच्छकश्माई न य रसगेहिपसंगो इस वुत्ते चोयगो भणइ ॥३॥ जइ पच्छकम्मदोसा हवंति मा चेव भुंजऊ सययं । तवनियमसंजमाणं चोयग ! हाणी खमंतस्स ॥४॥ लित्तंति भाणिऊणं छम्मासा हायए चउत्थं तु । आयंबिलस्स गहणं असंथरे अप्पलेवं तु ॥५॥ आयंबिलपारणए छम्मास निरंतरं तु खविऊणं । जइ न तरह छम्मासे एगदिणूणं तओ कुणउ ॥६॥ एवं एक्कक्कदिणं आयंबिलपारणं खदेऊणं । दिवसे दिवसे ॥ श्रीउत्तराध्ययनसूत्रं ॥
पू. सागरजी म. संशोधित
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