Book Title: Agam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi Author(s): Devvachak, Madhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana Publisher: Agam Prakashan SamitiPage 50
________________ युग-प्रधान-स्थविरावलि का-वन्दन] [१५ आचार्यों से दक्ष तथा धीर थे, जो उत्तम वाचक पद को प्राप्त हुए, ऐसे ब्रह्मद्वीपिक शाखा से उपलक्षित (२४) आचार्य सिंह को वन्दन करता हूँ। ___३७. जेसि इमो अणुओगे, पयरइ अज्जावि अढ-भरहम्मि । बहुनयर-निग्गय-जसे, ते वंदे खंदिलायरिए ॥ ३७ जिनका वर्तमान में उपलब्ध यह अनुयोग आज भी दक्षिणार्द्ध भरतक्षेत्र में प्रचलित है, तथा अनेकानेक नगरों में जिनका सुयश फैला हुआ है, उन (२५) स्कन्दिलाचार्य को मैं वन्दन करता हूँ। ३८. तत्तो हिमवंत-महंत-विक्कमे धिइ-परक्कममणंते। सज्झायमणंतधरे, हिमवंते वंदिमो सिरसा॥ ३८—स्कन्दिलाचार्य के पश्चात् हिमालय के सदृश विस्तृत क्षेत्र में विचरण करनेवाले अतएव महान् विक्रमशाली, अनन्त धैर्यवान् और पराक्रमी, भाव की अपेक्षा से अनन्त स्वाध्याय के धारक (२६) आचार्य हिमवान् को मस्तक नमाकर वन्दन करता हूँ। ३९. कालिय-सुय-अणुओगस्स धारए, धारए य पुव्वाणं। हिमवंत-खमासमणे वंदे णागन्जुणायरिए॥ ३९—जो कालिक सूत्र सम्बन्धी अनुयोग के धारक और उत्पाद आदि पूर्वो के धारक थे, महान् विशिष्ट ज्ञानी हिमवन्त क्षमाश्रमण को वन्दन करता हूं। तत्पश्चात् (२७) श्री नागार्जुनाचार्य को वन्दन व ४०. मिउ-मद्दव सम्पन्ने, अणुपुव्वी-वायगत्तणं पत्ते। ___ ओहसुयसमायारे , नागजुणवायए वंदे ॥ ४०—जो अत्यन्त मृदु—कोमल मार्दव, आर्जव आदि भावों से सम्पन्न थे, जो अवस्था व चारित्रपर्याय के क्रम से वाचक पद को प्राप्त हुए तथा ओघश्रुत का समाचरण करने वाले थे, उन (२८) श्री नागार्जुन वाचक को वन्दन करता हूँ। ४१. गोविंदाणं पि नमो, अणुओगे विउलधारणिंदाणं । णिच्चं खंतिदयाणं परूवणे दुल्लभिंदाणं ॥ ४२. तत्तो य भूयदिन्नं, निच्चं तवसंजमे अनिविण्णं । ___पंडियजण-सम्माणं, वंदामो संजमविहिण्णुं ॥ ४१-४२-अनुयोग सम्बन्धी विपुल धारणा रखने वालों में इन्द्र के समान (प्रधान), सदा क्षमा और दयादि की प्ररूपणा करने में इन्द्र के लिए भी दुर्लभ ऐसे (२९) श्री गोविन्दाचार्य को नमस्कार हो। तत्पश्चात् तप-संयम की साधना-आराना करते हुए, प्राणान्त उपसर्ग होने पर भी जो खेदPage Navigation
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