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श्रुतज्ञान]
[२१७ रहे हैं और जो भविष्य में विराधना करेंगे वे जीव अनागत काल में भव-भ्रमण करेंगे।
आणाए विराहित्ता सूत्र में यह पद दिया गया है। शास्त्रों में संसारी जीवों के हितार्थ जो कुछ कथन किया जाता है वही आज्ञा कहलाती है। अतः द्वादशाङ्ग गणिपिटक ही आज्ञा है। आज्ञा के तीन प्रकार बताए गए हैं, जैसे सूत्राज्ञा, अर्थाज्ञा और उभयाज्ञा।
(१) जमालिकुमार के समान जो अज्ञान एवं अनुचित हठ पूर्वक अन्यथा सूत्र पढ़ता है, वह सूत्राज्ञा-विराधक कहलाता है।
(२) दुराग्रह के कारण जो व्यक्ति द्वादशाङ्ग की अन्यथा प्ररूपणा करता है वह अर्थाज्ञा विराधक होता है, जैसे गोष्ठामाहिल आदि।
(३) जो श्रद्धाविहीन प्राणी द्वादशाङ्ग के शब्दों और अर्थ दोनों का उपहास करता हुआ अवज्ञापूर्वक विपरीत चलता है, वह उभयाज्ञा-विराधक होकर चतुर्गतिरूप संसार में परिभ्रमण करता रहता है।
द्वादशाङ्ग-आराधना का सुफल ११३–इच्चेइ दुवालसंगं गणिपिडगं तीए काले अणंता जीवा आणाए आराहित्ता चाउरंतं संसारकंतारं वीइवइंसु।
इच्चेइ दुवालसंगं गणिपिडगं पडुप्पण्णकाले परित्ता जीवा आणाए आराहित्ता चाउरंतं संसारकंतारं वीइवयंति।।
___ इच्चेइ दुवालसंगं गणिपिडगं अणागए काले अणंता जीवा आणाए आराहित्ता चाउरंतं संसारकंतारं वीइवइस्संति।
११३इस द्वादशाङ्ग गणिपिटक की भूतकाल में आज्ञा से आराधना करके अनत जीव संसार रूप अटवी को पार कर गए।
बारह-अङ्ग गणिपिटक की वर्तमान काल में परिमित जीव आज्ञा से आराधना करके चार गतिरूप संसार को पार करते हैं।
इस द्वादशाङ्ग रूप गणिपिटक की आज्ञा से आराधना करके अनन्त जीव चार गति रूप संसार को पार करेंगे।
विवेचन प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि द्वादशाङ्ग रूप गणिपिटक श्रुत की सम्यक् आराधना करने वाले जीवों ने भूतकाल में इस संसार-कानन को निर्विघ्न पार किया है, आज्ञानुसार चलने वाले वर्तमान में कर रहे हैं और अनागतकाल में भी करेंगे।
जिस प्रकार हिंस्र जन्तुओं से परिपूर्ण, नाना प्रकार के कष्टों की आशंकाओं से युक्त तथा अधंकार से आच्छादित अटवी को पार करने के लिए तीव्र प्रकाश-पुंज की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार जन्म, मरण, रोग, शोक आदि महान् कष्टों एवं संकटों से युक्त चतुर्गतिरूप संसार-कानन