________________
मतिज्ञान]
[९५ की थैली' इन शब्दों का बार-बार उच्चारण करता हुआ नगर भर में घूमने लगा।
एक दिन उस व्यक्ति ने राज्य के मंत्री को कहीं जाते हुए देखा तो उनसे ही कह बैठा—'पुरोहित जी! मेरी हजार मोहरों की थैली, जो आपके पास धरोहर में रखी है, लौटा दीजिए।' मंत्री उस दरिद्र व्यक्ति की बात सुनकर चकराया पर समझ गया कि 'दाल में कुछ काला है।' इस व्यक्ति को किसी ने धोखा दिया है। वह द्रवित हो गया और राजा के पास पहुँचा। राजा ने जब उस दीन व्यक्ति की करुण-कथा सुनी तो उसे और पुरोहित दोनों को बुलवा भेजा। दोनों राज्यसभा में उपस्थित हुए तो राजा ने पुरोहित से कहा—'ब्राह्मण देवता! तुम इस व्यक्ति की धरोहर लौटाते क्यों नहीं हो?' पुरोहित ने राजा से भी यही कहा—'महाराज! मैंने इसे कभी नहीं देखा और न ही इसकी कोई धरोहर मेरे पास है।' यह सुनकर राजा चुप रह गया और पुरोहित भी उठकर
ना हो गया। इसके बाद राजा ने द्रमक को बहत दिलासा देकर शान्त किया और पछा क्या सचमच ही परोहित के यहाँ तमने मोहरों की थैली धरोहर के रूप में रखी थी?' द्रमक ने जब राजा से आश्वासन पाया तो उसकी बुद्धि ठिकाने आई और उसने अपनी सारी कहानी तथा धरोहर रखने का दिन, समय, स्थान आदि सब बता दिया। राजा बुद्धिमान् था अतः उसने धूर्त पुरोहित को धूर्तता से ही पराजित करने का विचार किया।
___ एक दिन उसने पुरोहित को बुलाया तथा उसके साथ शतरंज खेलने में मग्न हो गया। खेलते-खेलते ही दोनों ने आपस में अंगूठियाँ बदल लीं। राजा ने मौका देखकर पुरोहित को पता न लगे, इस प्रकार एक व्यक्ति को पुरोहित की अंगूठी देकर उसके घर भेज दिया और ब्राह्मणी को कहलाया कि "यह अंगूठी पुरोहित जी ने निशानी के लिए भेजी है। कहलवाया कि अमुक दिन, अमुक समय पर द्रमक के पास से ली हुई एक हजार सुवर्ण मुद्राओं से भरी हुई थैली, जो अमुक स्थान पर रखी हैं, शीघ्र ही इस व्यक्ति के साथ भिजवा देना।"
ब्राह्मणी ने पुरोहित की नामांकित अंगूठी लाने वाले को थैली दे दी। सेवक ने राजा को लाकर सौंप दी। राजा ने दूसरी भी बहुत-सी थैलियां मंगवाई। उनके बीच में द्रमक की थैली रख दी और उसे अपने पास बुलवाया। द्रमक ने आते ही अपनी थैली पहचान ली और कहा–'महाराज! मेरी थैली यह है।' राजा ने थैली उसके मालिक को दे दी तथा पुरोहित की जिह्वा छेद कर वहाँ से लिकाल दिया। यह उदाहरण राजा की औत्पत्तिकी बुद्धि का परिचायक है।
(२०) अङ्क—एक व्यक्ति ने किसी साहूकार के पास एक हजार रुपयों से भरी हुई नोली धरोहर के रूप में रख दी। वह देशान्तर में भ्रमण करने चला गया। उसके जाने के बाद साहकार ने नोली के नीचे के भाग को बडी सफाई से काटकर उसमें खोटे रुपये भर दिये और नोली के सी दिया। कुछ समय पश्चात् नोली का मालिक लौटा और साहूकार से नोली लेकर अपने घर चला गया। घर जाकर जब उसने नोली में से रुपये निकाले तो खोटे रुपये निकले। यह देखकर वह बहुत घबराया और न्यायालय में पहुँचकर न्यायाधीश को अपना दुःख सुनाया। न्यायाधीश ने उस व्यक्ति से पूछा-'तेरी नोली में कितने रुपये थे?' 'एक हजार' उस व्यक्ति ने उत्तर दिया। तब न्यायाधीश