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[ नन्दीसूत्र
शक्ति व योग्यता से कुशलतापूर्वक राज्य कार्य करेंगे। वृद्धजन अशक्त होने के कारण किसी भी कार्य को ठीक प्रकार से नहीं कर सकते।"
राजा यद्यपि नवयुवक था, किन्तु अत्यन्त बुद्धिमान् था । उसने उन युवकों की परीक्षा लेने का विचार करते हुए पूछा - " अगर मेरे मस्तक पर कोई अपने पैर से प्रहार करे तो उसे क्या दंड देना चाहिये?"
युवकों ने तुरन्त उत्तर दिया- "ऐसे व्यक्ति के टुकड़े-टुकड़े कर देना चाहिए।" राजा ने यही प्रश्न दरबार के अनुभवी वृद्धों से भी किया। उन्होंने सोच विचारकर उत्तर दिया- "देव ! जो व्यक्ति आपके मस्तक पर चरणों से प्रहार करे उसे प्यार करना चाहिए तथा वस्त्राभूषणों से लाद देना चाहिये।"
वृद्धों का उत्तर सुनकर नवयुवक आपे से बाहर हो गये । राजा ने उन्हें शांत करते हुए उन वृद्धों से अपनी बात को स्पष्ट करने के लिये कहा। एक बुजुर्ग दरबारी ने उत्तर दिया- "महाराज ! आपके मस्तक पर चरणों का प्रहार आपके पुत्र के अलावा और कौन करने का साहस कर सकत है ? और शिशु राजकुमार को भला कौन-सा दंड दिया जाना चाहिए?"
वृद्ध का उत्तर सुनकर सभी नवयुवक अपनी अज्ञानता पर लज्जित होकर पानी-पानी हो गये। राजा प्रसन्न होकर अपने वयोवृद्ध दरबारियों को उपहार प्रदान किये तथा उन्हें ही अपने पदों पर रखा। युवकों से राजा ने कहा- " राज्यकार्य में शक्ति की अपेक्षा बुद्धि की आवश्यकता अधिक होती है ।" इस प्रकार वृद्धों ने तथा राजा ने भी अपनी पारिणामिकी बुद्धि का परिचय दिया ।
(१७) आँवला- एक कुम्हार ने किसी व्यक्ति को मूर्ख बनाने के लिये पीली मिट्टी का . एक आंवला बनाकर दिया जो ठीक आँवले के सदृश ही था । आँवला हाथ में लेकर वह व्यक्ति विचार करने लगा — "यह आकृति में तो आँवले जैसा है, किन्तु कठोर है और यह ऋतु भी आँवलों की नहीं है।" अपनी पारिणामिकी बुद्धि से उसने आँवले की कृत्रिमता को जान लिया और उसे फेंक दिया।
(१८) मणि- किसी जंगल में एक मणिधर सर्प रहता था । रात्रि में वह वृक्ष पर चढ़कर पक्षियों के बच्चों को खा जाता था। एक बार वह अपने शरीर को संभाल नहीं सका और वृक्ष से नीचे गिर पड़ा। गिरते समय उसकी मणि भी वृक्ष की डालियों में अटक गई। उस वृक्ष के नीचे एक कुंआ था । मणि के प्रकाश से उसका पानी लाल दिखाई देने लगा। प्रातःकाल एक बालक खेलता हुआ उधर आ निकला और कुंए के चमकते हुए पानी को देखकर घर जाकर अपने वृद्ध पिता को बुलाया लाया। वृद्ध पिता पारिणामिकी बुद्धि से सम्पन्न था। उसने पानी को देखा और जहाँ से पानी का प्रतिबिंब पड़ता था, वृक्ष के उस स्थान पर चढ़कर मणि खोज लाया । अत्यन्त प्रसन्न होकर पिता पुत्र घर की ओर चल दिये।
(१९) सर्प - भगवान् महावीर ने दीक्षा ग्रहण करने के पश्चात् प्रथम चातुर्मास अस्थिक ग्राम में किया तथा चातुर्मास के पश्चात् श्वेताम्बिका नगरी की ओर विहार कर दिया। कुछ आगे बढ़ने