Book Title: Agam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Author(s): Devvachak, Madhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 226
________________ श्रुतज्ञान ] (५) श्री व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र ८७ से किं तं विवाहे ? [ १९१ विवाहे णं जीवा विआहिज्जंति, अजीवा विआहिज्जंति, जीवाजीवा विआहिज्जंति, ससमए विहिज्जति, परसमए विआहिज्जति ससमय-परसमए विआहिज्जति, लोए विआहिज्जति, अलोए विहिज्जति लोयालोए विआहिज्जति । विवाहस्स णं परित्ता वायणा, संखिज्जा अणुओगदारा, संखिज्जा वेढा, संखिज्जा सिलोगा, संखिज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखिज्जाओ संगहणीओ, संखिज्जाओ पडिवत्तीओ । से णं अंगट्टयाए पंचमे अंगे, एगे सुअक्खंधे, एगे साइरेगे अज्झयणसए, दस उद्देसगसहस्साईं, दस समुद्देसगसहस्साइं, छत्तीसं वागरणसहस्साईं, दो लक्खा अट्ठासीई पयसहस्साइं पयग्गेणं, संखिज्जा अक्खरा, अणंता गमा, अणंता पज्जवा, परित्ता तसा, अनंता थावरा, सासय-कड - निबद्ध-निकाइआ जिण-पण्णत्ता भावा आघविज्जंति, पन्नविज्जंति, परूविज्जंति, दंसिज्जंति, निदंसिज्जंति, उवदंसिज्जंति। से एवं आया, एवं नाया, एवं विण्णाया एवं चरण-करणपरूवणा आघविज्जइ । सेत्तं विवाहे । ॥ सूत्र ५० ॥ ८७– व्याख्याप्रज्ञप्ति में क्या वर्णन है ? उत्तर—व्याख्याप्रज्ञप्ति में जीवों की, अजीवों की तथा जीवाजीवों की व्याख्या की गई है। स्वसमय, परसमय और स्व-पर- उभय सिद्धान्तों की व्याख्या तथा लोक अलोक और लोकालोक के स्वरूप का व्याख्यान किया गया है । व्याख्याप्रज्ञप्ति में परिमित वाचनाएं, संख्यात अनुयोगद्वार, संख्यात वेढ - श्लोक विशेष, संख्यात निर्युक्तियाँ, संख्यात संग्रहणियां और संख्यात प्रतिपत्तियां हैं। अङ्ग-रूप से यह व्याख्याप्रज्ञप्ति पाँचवाँ अंग है । एक श्रुतस्कंध, कुछ अधिक एक सौ अध्ययन हैं। दस हजार उद्देश, दस हजार समुद्देश, छत्तीस हजार प्रश्नोत्तर और दो लाख अट्ठासी हजार पद परिमाण है। संख्यात अक्षर, अनन्त गम और अनन्त पर्याय हैं। परिमित त्रस, अनन्त स्थावर, शाश्वत - कृत - निबद्ध-निकाचित जिनप्रज्ञप्त भावों का कथन, प्रज्ञापन, प्ररूपण, दर्शन, निदर्शन तथा उपदर्शन किया गया है। व्याख्याप्रज्ञप्ति का अध्येता तदात्मरूप एवं ज्ञाता - विज्ञाता बन जाता है । इस प्रकार इसमें चरणकरण की प्ररूपणा की गई है। यह व्याख्याप्रज्ञप्ति का स्वरूप है । विवेचन — इस सूत्र में व्याख्याप्रज्ञप्ति ( भगवती) का संक्षिप्त परिचय दिया । इसमें इकतालीस दस हजार उद्देशक, छत्तीस हजार प्रश्न तथा उन सबके उत्तर हैं । प्रारम्भ के आठों शतक तथा शतक,

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